१०६ गदर के पत्र विद्रोही सिपाही इन लोगों की तलाश में एक गोली की मार तक पहुँच गए थे, कितु ईश्वर की कृपा से ये उन आततायियों के हाथ न लगे। अब दोनो दल इकट्ठे होकर चले । परस्पर मिलने से धैर्य भी बँधा । अब आदमी भी अधिक हो गए थे। वे दो या तीन मील तक यमुना के किनारे-किनारे चलते रहे। इसके बाद एक नाले पर पहुंचे, जिसे पार करना बहुत कठिन था, क्योंकि वह गर्दन तक गहरा था, और इस जोर से बहता था कि पाँव उखड़े जाते थे। निदान, थोड़ी दूर तक वे सब बहते चले गए। अंत में किसी तरह पैर जमाकर दूसरे किनारे तक पहुंचे। अब संध्या हो गई थी, और नाले में घुसने के कारण बड़ी सर्दी लग रही थी। दूसरी सुबह को गांववाले फिर इनके मित्र बने, और एक स्थान पर, जहाँ बहुत-से पेड़ थे, जाकर ठहराया । पर थोड़ी देर पीछे इनसे कहा, यहाँ रहना ठीक नहीं, क्योंकि विद्रोही सवारों की टुकड़ी इनके पीछे लगी हुई है। यहां से चलकर गूजरों के एक झुंड के हाथ में पड़ गए, जिनके निकृष्ट विचार शीघ्र ही प्रकट हो गए । चूँ कि इनकी बंदूकें आदि पानी से भीग गई थीं, इसलिये गूजरों का सामना करना व्यर्थ जान पड़ा। गूजरों ने बड़ी बेहूदगियां की, और बड़ी निर्दयता के साथ तमाम हथियार और असबाब छीनकर तथा पहनने के कपड़े तक उतरवाकर लंबे पड़े। गूजर कमबख्त इनकी जान भी न छोड़ते, मगर एक साधु ने समझा-बुझाकर .
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