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सातवीं कथा


इसके थोड़ी देर बाद २०० सवार अहाते के भीतर आ गए, और उसी मकान के पास खड़े हुए, जिसमें हम सब छिपे थे। नौकरों से पूछा कि साहब और मेम लोग कहाँ हैं। तुम अपनी जान का भय न करो। हम तुममें से किसी को न मारेंगे, परंतु हमारा विचार है कि सब ईसाइयों को जो दिल्ली में हैं, मार डालें। नौकरों ने कहा, सब भाग गए। हमको मालूम नहीं, कहाँ गए। अगर तुमको खयाल हो कि बँगले में होंगे, तो स्वयं जाकर देख लो। इस जवाब से उन्हें कुछ विश्वास हो गया, और वे बाहर जाकर ढूँढ-ढाँढ़ करने लगे।

थोड़ी देर बाद ७४ नं० रेजिमेंट के ६ सिपाही और आ गए। इनको वह मकान, जहाँ हम सब छिपी थीं, मालूम हो गया। वे खूब हँसे, और क़हकहा लगाने लगे। और, बंदूक़ें दिखा- कर कहा, हम तुम्हें मार डालेंगे। हमने बहुत मिन्नत व खुशामद से कहा कि हमें मत मारो। इस पर उन्होंने कहा, अच्छा, बाहर आओ, और हमारे साथ चलो, फिर देखना, हम क्या करते हैं। हम बाहर निकलकर उनके साथ हो लीं। वे सब हमको गारद में ले गए, और अफसरों की लाशें दिखा- फर हँसकर कहने लगे -- देखो, ये सब इसलिये मारे गए हैं कि कमांडर इन चीफ़ साहब ने हमारे मज़हब को खराब करने का इरादा किया था।

इसके बाद अफ़सरों ने देखा, हम नीचे सिपाहियों के