पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१३०

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नवी कथा मोहनलाल, जिसने काबुल में सरकारी सेवा की थी, देहली में मौजूद था । जब वहाँ विद्रोह खड़ा हुआ, तो कत्ल से बचकर उसने बलीदादखाँ के यहाँ शरण ली, पर वलीदादरखा ने उसे बालागढ़ के किले में ४२ दिन तक कैद रक्खा । इसके बाद वह वहां से भागकर अगस्त के पहले हाते में मेरठ पहुँचा । वह अपना हाल एक खत में, जो हाजस साहब के बेटे के नाम लिखा था, इस तरह बयान करता है- हाजस साहब शनिश्चर के दिन १० मई को प्रातःकाल दिल्ली पहुंच गए । हम दोनो मिलकर बहुत प्रसन्न हुए, और उन चीजों को भेजने का प्रबंध करने लगे, जो राजा साहब के लिये खरीदी थीं । शाम को मैं उन्हें अपनी गाड़ी में सवार कराकर शहर की बड़ी-बड़ी इमारतें दिखाने ले गया। रात हमने अत्यंत प्रसन्नता से काटी। तुम्हारी और हेनरी की शिक्षा के संबंध में चर्चा होती रही कि इतनी छोटी अवस्था में भी किस योग्यता से अपने दफ्तर का काम करता है। ११ मई का अशुभ प्रभात प्रकट हुआ। रविवार के सबेरे तक शहर में हर तरह शांति थी, झगड़े का कोई भी चित न था। कलकत्ते के अखबार भी आए । एकाएक यह भयानक