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नवीं कथा


में सरकारी राजभक्ति का हाल सुनकर फिर आक्रमण किया। पहले पास-पडोस की दूकानों को लूटा, और फिर ज़बर्दस्ती मेरे घर में घुस आए। सब माल-असबाब लूट लिया, और मुझे पकड़ लिया। कहा कि तू इँगलिस्तान जाने की वजह से हिंदू नही रहा, और अपनी लड़की को विलायत शिक्षा के लिये भेजने और हाजस साहब की रिश्तेदारी की वजह से तू मुसलमान भी नहीं। इसके सिवा तू सरकार का जासूस भी है। इसीलिये तुझे बड़ी भारी पेंशन भी मिलती है, अतः न तुझे मार डालेंगे। यहाँ तक कि एक ने बंदूक की नाल मेरी छाती पर रख दी। पर स्त्रियों के अनुनय- विनय, रोने-धोने, खुशामद करने और हिंदू-मुसलमान पड़ोसियों के समझाने-बुझाने से कुछ पिघल गए। इसी समय कोतवाल के उधर आ जाने से मैं उस समय बच गया। विद्रोहियों ने कहा, तहक़ीक़ात करने के पीछे मारेंगे।

इस घटना के पीछे मैं भाग गया, कभी कहीं रहता, कभी कहीं। हाजस साहब भी चचा के घर से मेरी खाला के मकान में चले गए, और वहाँ कुछ दिन रहे। अब लोगों को संदेह हुश्रा कि हाजस साहब वहाँ छिपे हैं। तब सबकी सलाह हुई कि भाग्य-परीक्षा करके भागना चाहिए। क्योंकि वह इससे तो अच्छा है कि घर में गिरफ्त़ार करके मार डाले जायँ।

रात के ८ बजे भेष बदलकर इस विचार से चले कि लाहौरी दरवाज़े से किसी तरह बाहर होकर कर्नाल चल दें। पर इनके