पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१३९

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ग़दर के पत्र 9 हो ही रहा था कि एक विद्रोही ने मेरे कंधे पर जोर से लकड़ी मारी । मैंने भी लौटकर अपनी रायफल का कुंदा उसके जड़ दिया । जब हम अपनी बंदूकें देकर गाँव वापस आते थे, उस समय बटलर साहब ने अपना पिस्तौल उस श्रादमी से छोनकर, जिसको उन्होंने दिया था, अपना रास्ता पकड़ा । इस बीच में एक आदमी ने मेरे सिर पर तलवार मारी। मैंने कहा, बस, जो कुछ मेरे पास है, ले लो। १५०) मेरे पास थे, वे दे दिए । इसके बँटवारे में परस्पर लड़ाई होने लगी। मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो बटलर'साहब रफूचक्कर हो गए थे। और, कोई उनका पोछा न कर रहा था। इस बीच में एक आदमी दौड़कर आया, और बड़े जोर से मेरे सिर पर तलवार मारी, जिसके सदमे से मैं जमीन पर गिर पड़ा। पर तलवार कुंद थी, जख्म न आया। मैंने जमीन पर गिरकर दम साध लिया, और औंधे मुंह सीने के बल पड़ा रहा। उन्होंने मरा समझकर कपड़े, जूते, सिगरेट-बक्स सब कुछ ले लिया, और आपस में लड़ने-झगड़ने लगे । सिगरेट-बक्स में ३) रु० थे। उसी विषय में मैं लूंगा, मैं लूंगा होने लगा। असबाब बाँटने के बाद वे मेरे चारो ओर खड़े हुए, और थोड़ी देर कुछ मर्सिया-सा गाते रहे । कभी-कभी मुझे लातें भी मार देते थे । एक ने इस विचार से कि देखें मर गया या अभी जिदा है, मेरी गर्दन पर पांव रक्खा, और उठाकर जमीन पर पटक मारा । पर मैंने भी ऐसा दम साधा.