पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१४०

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ग्यारहवी कथा १३१ . कि उन्होंने मुर्दा समझ लिया । मैंने पत्थर की तरह अपना शरीर कड़ा कर लिया। एक आदमी ने फिर मेरी गर्दन के नीचे पैर डालकर मुझे सीधा किया, और मेरे सीने पर हाथ रक्खा । उस वक्त मैंने सांस लेना बिलकुल बंद कर दिया। जब उसका हाथ मेरे दिल पर आया, मैंने बिलकुल दम नहीं लिया। इसके बाद कुछ शोर हुआ, जिसका कारण मैं विलकुल न समझ सका । थोड़ी देर बाद मैंने एक प्रौख चुपके से खोलो, तो काई न दिखाई दिया, तब मैं उठा। पर बहुत खून निकल गय था । चकार आने लगे। पर किसी तरह भागा ही था कि सशस्त्र आदमियों का एक मुड सामने दिखाई पड़ा। चे परस्पर कुछ बातचीत कर रहे थे। मुझे देखकर इशारे से उन्होंने कहा कि यहाँ से चले जाओ। इनमें से एक आदमी मेरे पास आया, और मेरी प्रार्थना से एक कुएँ पर मुझे ले गया। वहाँ मैंने पानी पिया। उसी आदमी ने मुझे एक सोधा और साफ़ रास्ता बताया, जिसमे माइभकाड़ और कांटे न थे। क्योंकि मेरे पाँव में जूते न थे। और, काँटेदार रास्ते में मेरा चलना बहुत कठिन था। रास्ता बताकर वह स्वयं भी मेरे साथ चला और कहा कि आप अपने खन भरे कपड़े दे दें, मैं इन्हें धुला दूं। इस वहाने से उसने मेरी वास्कट, जिसमें अनीक के बटन और सोने को जंजीर थी, उतरवा ली, और चाहा कि मुझे मारे । मैंने उसे समझा दिया कि यद्यपि मैं घायल हूँ, किंतु अँगरेज़ हूँ। मैंने उसे जमीन पर दे मारा, और आगे