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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१४१

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१३२ गदर के पत्र बढ़ा । परंतु धूप की तेजी के कारण मैं बेदम हो रहा था। मैंने कमीज़ सर पर रक्खी, और इस तरह दो-एक मील चला था कि दो-तीन आदमी लठ लिए मेरे पास आए, और धम- काने लगे। मैंने कहा, मार डालोगे, तो भी कुछ न मिलेगा, क्योंकि मेरे पास कुछ नहीं है। पर यदि तुम मुझे बल्लभगढ़ पहुँचा दो, तो १००) दे सकता हूँ, और आगरे पहुँचा देने पर ३००) दूंगा। यह सुनकर उन्होंने थोड़ा-सा पानी पिलाया, और छोड़ दिया। इसके बाद एक अत्यंत भयंकर आदमी खेतों से दौड़ता और शोर करता मेरे पास आया। मैं उसे देखकर खड़ा हो गया। उसने मेरे सिर से कमीज़ उतार ली। मारने को था कि मैने हाथ उठाकर कहा कि मेरे पास एक कौड़ी नहीं । पर बल्लभगढ़ पहुँचाने के १००) और आगरे तक के ३००) दे सकता हूँ । उसे इस पर विश्वास न हुआ कि राजा बल्लभगढ़ हमारा दोस्त है। इस बीच में, और गाँव- वाले भी आए, और कहा, दो अँगरेज़ दूसरे गाँव में, जो यहाँ से निकट है, आए हुए है । उन्होंने मुझे पानी भी पिलाया, और उस गाँव में पहुंचा दिया। वहाँ स्पेंसर साहब और कमिंग साहब मौजूद थे । और, ईश्वर की दया से उन्हें रास्ते में कोई विद्रोही भी नहीं मिला था। इन दोनो से मिलकर मुझे बड़ी ढाढ़स बँधी । स्पेंसर साहब ने कृपा कर मेरे घाव धोए । दोनो आदमियों ने गांव के नंबरदार से इकरार किया कि यदि तुम हमें आगरा पहुँचा दोगेतो को श्रादमी ५००) देंगे । बहुत ,