ग्यारहवीं कथा १३३ हुज्जत के बाद उसने इनकार कर दिया । पर इनकी बंदूकें और ३००Jछीन लिए । उसी समय हमारे पास मिचल साहब की एक चिट्ठी पहुंची। उन्होंने हमें बुलाया था, और लिखा था, खत लानेवाले के साथ चले आओ। यह गाँव सरकार का राज- भक्त है । पूछने पर मालूम हुआ कि वह गॉव यहाँ से २ कोस है। वहाँ हम पहुँचे। शाम तक ठहरे। रक्षक ने हमे सलाह दी कि यहाँ से दूसरे गाँव को, जो यहाँ से ६ मील है, चलना चाहिए, क्योंकि वह गाँव बड़ा है, वहाँ के निवासी हमारी रक्षा भी कर सकते हैं । इसलिये हम वहाँ चले गए । वहाँह दिन रहे । इस बीच में यद्यपि मेवातियों ने इस गाँव को बहुत डराया-धमकाया कि हम गांव पर हमला करेंगे, पर उन्होंने कुछ परवा न को। तब हमे विश्वास हो गया कि यदि हम उस छोटे गाँव में रहते, तो अवश्य मारे जाते। इसके बाद हमें और ज्यादा संतोष हुआ कि कोरो साहब मजिस्ट्रेट गुड़गांवा ने होडल के मुक्काम से भरतपुर की सेना का एक पेश गारद हमारी रक्षा और साथ के लिये भेजा, और हम वहाँ पहुँच गए । वहाँ हमें बहुत आराम मिला । वहाँ बहुत दिन रहे । देहली विजय होने की खबर की प्रतीक्षा रहती थी। इसी बीच में मथुरा में भी उपद्रव हो गया, और जो सिपाही हमारे साथ थे, विद्रोही हो गए, और हमसे कहा कि यहाँ से चले जाओ। तब हम २६ जून को हार्डी साहब के साथ आगरे चले गए।
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