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ग़दर के पत्र


बुर्ज तक पहुँचा दिया। बुर्ज पर पहुँचकर घोड़ा ज़मीन पर गिरकर मर गया, और दोनो तोपें तथा सिपाही शहर की तरफ़ चले गए।

तदनंतर जब लेफ्ट़िनेंट ग्लोवी साहब भी आ गए, तो मेजर एबट साहब ने ७४ नं० की एक पल्टन को इसलिये रवाना किया कि वह जाकर यह खबर लाए कि मेगज़ीन के उड़ने से जो रास्ता हो गया है, उसमें से वह आगे बढ़ते हैं या नहीं। मगर वहाँ विद्रोहियों का इस कदर इलाज हो गया था कि वे भयभीत होकर सब-के-सब शहर को भाग चले।

उस समय ३ बजे होंगे, और कश्मीरी दरवाज़े में विद्रोहियों का कोई पता-निशान न था। इस बीच में छावनी से हुक्म आया कि २ तोपें छावनी को वापस भेज दी जायँ। अतः लेफ्ट़िनेंट एस्प्लेसी साहब के साथ तुरंत तोपें रवाना कर दी गईं। मेजर एबट साहब ने अब यह इरादा किया कि जो मेमें गारद के आश्रित निवास स्थान में हैं, उनको छावनी रवाना कर देना चाहिए। यह सोचकर आज्ञा दी कि गाड़ी तैयार की जाय। थोड़ी देर बाद वे ही दोनो तोपें, जो छावनी भेजी गई थीं, कश्मीरी दरवाज़े फिर वापस आ गईं। मगर लेफ्ट़िनेंट और गोलंदाज उनके साथ न थे। तो भरनेवालों ने आकर बयान किया कि गोलंदाज़ तोपें छोड़ भाग गए हैं, और हम बग़ैर उनके छावनी न जायँगे। आखिर तीन-तीन, चार-चार सिपाही मिलकर तोपों के साथ दरवाज़े के अंदर आए।