दूसरी कथा ६६ अनुमानतः साढ़े तीन बजे के ब्रगेडियर साहब का हुक्म मेजर एवट साइव के नाम इस वृत्त-संबंधी आया कि जिस कदर नं० ७४ रेजिमेंट के सिपाही उनके साथ हों, उनको लेकर बहुत जल्द छावनी पहुँच जायें । जब यह हुक्म आया, तो मेजर टीमेंस और डिप्टी कलेक्टर साहब ने कहा कि इस समय इस रेजिमेंट का यहाँ से जाना उचित नहीं, क्योंकि नव तक वहीं इनके स्थानापन्न सिपाही न हों, तब तक इसको छोड़ना ठीक नहीं। मगर डिप्टी कलेक्टर साहब को दूसरा भय था । वह ७४ नं० की रेजिमेंट का हाल देख चुके थे, और इनके रंग-ढंग अच्छे न थे। परंतु मेजर एबट साहब ने कहा, चूँकि हुक्म खास तौर से मेरे नाम पाया है, इस कारण उसका पालन में आवश्यक समझता हूँ। पर डिप्टी साहब ने कहा, आप थोड़ी देर ठहरिए, मैं खुद छावनी जाकर ब्रगेडियर साहव से यहाँ ठहरने की आवश्यकता वर्णन करता हूँ। अगर मान गए,तो अच्छा है, अन्यथा आज्ञा का पालन किया जायगा । अस्तु । यह कहकर सवार हो गए । तो पहले ही वापस आ चुकी थीं। डिप्टी कलेक्टर साहब ने उनसे कहा, अब तुम हमारे साथ चलो, और चूंकि बहुत-सी मेमें मौजूद थीं, और वह गाड़ी अब तक नहीं आई थी, जिसके लिये हुक्म दिया गया था, इसलिये तोपखाने की एक पेटी खाली कर दी गई, और सब उसमें सवार करा दिए गए, और छावनी को रवाना हो चले। . .
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