७१ दूसरी कथा के करीब छावनी पहुँचे । मेजर एबट साहब ने बंदूकों की आवाज़ सुनी, तो अपने सिपाहियों से पूछा, यह क्या हो रहा है । उन्होंने जवाब दिया, ३८ नं. की पल्टन के सिपाही अपने ऑफिसरों को मार रहे हैं। यह सुनकर मेजर साहब ने हुक्म दिया कि वापस चलकर ओहदेदारों को मदद करो। किसी ने हुक्म न माना, और तमाम खुशामद व चापलूसी मेजर साहव की बेकार गई। सिपाहियों ने कहा, यही बहुत है कि हमने तुमको बचा लिया । हमसे वहाँ जाकर कुछ न होगा, बल्कि तुम्हें भी खो बैठेंगे। यह कहकर बहुत-से सिपाही मेजर साहब के आस-पास जमा हो गए, और जबरदस्तो उनको छावनी के अंदर ढकेल ले गए । मालूम हुश्रा, सिपाहियों ने बड़ी निर्दयता से ऑफिसरों पर गोलियाँ बरसाई। लेफ्टिनेंट स्मिथ साहब पहले तो ४ सिपाहियों के हाथ से बच गए थे, पर पीछे गुलजारसिह सिपाही के हाथ से मारे गए । कारण यह कि तमाम सिपाहियों ने इस मनुष्य को खास तौर से स्मिथ साहब को करल करने की गरज से तैनात किया था, इसलिये साहब ने इस सिपाहो को.राफलतन आज्ञा उल्लंघन करने के आधार पर ओहदे से हटा दिया था। इसके अलावा लेफ्टिनेंट असनोरी साहब भी जख्मी हुए थे, और फोर्ट साहब की मेम के सीने पर गोली लगी थी। बाकी जितने ओहदेदार तथा औरतें थीं, वे दीवार पर चढ़ गई थी, इसलिये विद्रोहियों ने गोलियां चलानी
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