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खा जायगा। रमा सहम उठा। इन आतंक से भरे शब्दों ने उसे विचलित कर दिया। यह सब कोई झूठा मुकदमा चलाकर उसे फँसा दें, तो उसकी कौन रक्षा करेगा। उसे यह आशा न थी, कि डिप्टी साहब जो शील और विनय के पुतले बने हुए थे, एक बारगी यह रुद्र रूप धारण कर लेंगे; मगर वह इतनी आसानी से दबनेबाला न था। तेज होकर बोला--आप मुझसे जबरदस्ती शहादत दिलायेंगे ?

डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा—— हां, जबरदस्ती दिलायेगा।

रमा०——यह अच्छी दिल्लगी है !

डिप्टी——तोम पुलिस को धोखा देना दिल्लगी समझता है। अभी दो गवाह देकर साबित कर सकता है, कि तुम राजद्रोह का बात कर रहा था। अस चला जायगा सात साल के लिए। चक्की पीसते-पीसते हाथ में घटटा पड़ जायगा। यह चिकना-चिकता माल नहीं रहेगा।

रमा जेल से डरता था। जेल-जीवन की कल्पना ही से उसके रोएँ खड़े होते थे। जेल ही के भय से उसने वह गवाही देनी स्वीकार की थी। वही भय इस वक्त भी उसे कातर करने लगा। डिप्टी भाव-विज्ञान का ज्ञाता था। यासन का पता आ गया, बोला——वहां हलवा पूरी नहीं पायगा। धूल मिला हुआ आटा का रोटी, गोमो के सड़े हुए पत्तों का रसा, और अरहर की दाल का पानी खाने को पावेगा। काल कोठरी का चार महीना भी हो गया, तो तुम बच भी नहीं सकता, वहीं भर जायगा। बात-बात पर वार्टर गाली देगा, जूतों से पीटेगा, तुम समझता क्या है।

रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षरा उसका खून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। कांपती हुई आवाज से बोला-आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही ! भेज दीजिए जेल! मर ही जाऊँगा न ? फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायगा। जब आप यहां तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूँ। जो कुछ होना होगा, होगा।

उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुँच गया था, जब जरा-सी सहानुभूति, जरा-सी सहृदयता सैकड़ों धमकियों से कहीं कारगर हो जाती है। इंस्पेक्टर साहब ने मौका ताड़ लिया ! उसका पक्ष लेकर डिप्टी से बोले——

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