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जग्गो ने एक बार उसकी ओर देखा और मुँह फेर लिया। केवल इतना बोली -- कहीं गये होंगे, मैं नहीं जानती।

रमा ने सोने की चार चूड़ियाँ जेब से निकालकर जग्गो के पैरों पर रख दीं और बोला -- यह तुम्हारे लिए लाया हूँ दादी। पहनों, ढीली तो नहीं है ?

जग्गो ने चूड़ियाँ उठाकर ज़मीन पर पटक दीं और आँखें निकालकर बोली -- जहाँ इतना पाप समा सकता है, वहाँ चार चूड़ियों की जगह नहीं है ? भगवान् की दया से बहुत चूड़ियाँ पहन चुकी और अब भी सेर-दो-सेर सोना पड़ा होगा; लेकिन जो खाया, पहना, अपनी मिहनत की कमाई से, किसी का गला नहीं दबाया, पाप की गठरी सिर पर नहीं लादी, नीयत नहीं बिगाड़ी। उस कोख में आग लगे जिसने तुम जैसे कपूत को जन्म दिया। यह पाप की कमाई लेकर तुम बहू को देने आये होगे। समझते होगे, तुम्हारे रुपयों की थैली देखकर वह लट्टू हो जायेगी। इतने दिन उसके साथ रहकर भी तुम्हारी लोभी आँखें उसे न पहचान सकीं। तुम जैसे राकस उस देवो के जोग न थे। अगर अपना कुशल चाहते हो, तो इन्हीं पैरों जहाँ से आये हो वहाँ लौट जाओ, उसके सामने जाकर क्यों अपना पानी उतरवाओगे। तुम आज पुलिस के हाथों जख्मी होकर, मार खाकर आये होते, तुम्हें सजा हो गयी होती, तुम जेहल में डाल दिये गये होते, तो बहू तुम्हारी पूजा करती, तुम्हारे चरण धो-धोकर पीती। वह उन औरतों में है चाहे मजूरी करे, उपास करे,, फटे चीथड़े पहनें, पर किसी की बुराई नहीं देख सकती। अगर तुम मेरे लड़के होते तो, तुम्हें ज़हर दे देती। क्यों खड़े मुझे जला रहे हो? चले क्यों नहीं जाते ? मैंने तुमसे कुछ ले तो नहीं लिया है?

रमा सिर झुकाये चुपचाप सुनता रहा। तब आहत स्वर में बोला -- दादी, मैंने बुराई की और इसके लिए मरते दम तक लज्जित रहूँँगा। लेकिन तुम मुझे जितना नीच समझ रही हो, उतना नीच नहीं हूँ। अगर तुम्हें मालूम होता, कि पुलिस ने मेरे साथ कैसी-कैसी सख्तियां की, मुझे कैसी-कैसी धमकियां दी, तो तुम मुझे राक्षस न कहतीं।

जालपा के कानों में इन आवाज़ों की भनक पड़ी। उसने जीने से झाँँककर देखा। रमानाथ खड़ा था। सिर पर बनारसी रेशमी साफा था, रेशम का बढ़िया कोट, आँँखों पर सुनहरी ऐनक। इस एक ही महीने में उसकी
                                   

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