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देह निखर आयी थी, रंग भी कुछ अधिक गोरा हो गया था। ऐसी कांति उसके चेहरे पर कभी न दिखायी दी थी। उसके अंतिम शब्द जालपा के कानों में पड़ गये। बाज़ की तरह कूदकर धम्-धम् करती हुई नीचे आयी और जहर में बुझे हुए नेत्रवाणों का उस पर प्रहार करती हुई बोली -- अगर तुम सख्तियों और धमकियों से इतना दब सकते हो, तो तुम कायर, हो। तुम्हें अपने को मनुष्य कहने का कोई अधिकार नहीं ! क्या सख्तियां थीं ? जरा सुनूँ तो ? लोगों ने हँसते-हँसते सिर कटा लिये हैं, अपने बेटों को मरते देखा है, कोल्हू में पेले जाना मंजूर किया है, पर सचाई से जी भर भी न हटे। तुम भी तो आदमी हो, तुम क्यों धमकी में आ गये ? क्यों नहीं छाती खोलकर खड़े हो गये, कि इसे गोली का निशाना बना लो; पर मैं झूठ न बोलूंँगा। क्यों नहीं सिर झुका दिया ? देह के भीतर इसीलिये आत्मा रखी गयी है, कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे। इस पाप का क्या पुरस्कार मिला ? जरा मालूम तो हो?

रमा ने दबी आवाज़ से कहा -- अभी तो कुछ नहीं।

जालपा ने सर्पिणी की भांति फुकारकर कहा -- यह सुनकर मुझे खुशी हुई। ईश्वर करे, तुम्हें मुंह में कालिख लगाकर भी कुछ न मिले। मेरी यह सच्चे दिल से प्रार्थना है। लेकिन नहीं, तुम जैसे मोम के पुतले को पुलिसवाले कभी नाराज न करेंगे। तुम्हें कोई जगह मिलेगी और शायद अच्छी जगह मिले; मगर जिस जाल में तुम फंसे हो, उससे निकल नहीं सकते। झूठी गवाही, झूठे मुक़दमे बनाना और पाप का व्यापार करना तुम्हारे भाग्य में लिख गया। जाओ शौक से जिन्दगी के सुख लूटो। मैंने तुमसे पहले कह दिया था और आज फिर कहती हूँ, कि मेरा तुमसे कोई नाता नहीं। मैंने समझ लिया, कि तुम मर गये। तुम भी समझ लो, कि मैं मर गयी। बस, जाओ। मैं औरत हूँ। मगर कोई धमकाकर मुझसे पाप कराना चाहे, तो चाहे उसे न मार सकूँ, अपनी गर्दन पर छुरी चला दूंँगी। क्या तुममें औरत के बराबर भी हिम्मत नहीं है?

रमा ने भिक्षकों की भांति गिड़गिड़ाकर कहा -- तुम मेरा कोई उज्र न सुनोगी?

जालपा ने अभिमान से कहा -- नहीं।                                  

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