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बुलवा लेंगे। दो घड़ी की बहार होगी। अब आप मिसेज रमानाथ को बँगले ही पर क्यों नहीं बुला लेते ? वहां उस खटिक के घर पड़ी हुई हैं।'

रमा ने कहा——अभी तो मुझे एक जरूरत से दूसरी तरफ जाना है। आप मोटर ले जायें। मैं पांव पांव चला जाऊँगा।।

दारोगा ने मोटर के अन्दर जाकर कहा——नहीं साहब, मुझे कोई जल्दी नहीं है। आप जहां चलना चाहें, चलिए। मैं जरा भी मुखिल न हूँगा।

रमा ने कुछ चिढ़कर कहा——लेकिन मैं अभी बंगले पर नहीं जा रहा हूँ।

दारोगा ने मुसकुराकर कहा——मैं समझ रहा हूँ; लेकिन जरा भी मुखिल न हूँगा। वहां बेगम साहब ...

रमा ने बात काटकर कहा——जी नहीं, वहीं मुझे नहीं जाना है।

दारोगा——तो क्या कोई दूसरा शिकार है ? बंगले पर भी आज कुछ कम बहार न रहेगी। वहीं आपके दिल-बहलाव का कुछ सामान हाजिर हो जायगा।

रमा ने एकबारगी आंखें लाल कर कहा——क्या आप मुझे शोहदा समझते हैं ? मैं इतना जलील नहीं हूँ।

दारोगा ने कुछ लज्जित होकर कहा——अच्छा साहब, गुनाह हुआ, माफ कीजिए। अब कभी ऐसी गुस्ताखी न होगी; लेकिन अभी आप अपने को खतरे से बाहर न समझे। मैं आपको किसी ऐसी जगह न जाने दूंगा जहां मुझे पूरा इतमीनान न होगा। खबर नहीं, आपके कितने दुश्मन है। मैं आप ही के फायदे के खयाल से कह रहा हूँ।

• रमा ने होंठ चबाकर कहा——बेहतर हो, कि आप मेरे फायदे का खयाल न करें। आप लोगों ने मुझे मटियामेट कर दिया, और अब भी मेरा गला नहीं छोड़ते। मुझे अब अपने हाल पर मरने दीजिए। मैं इस गुलामी से तंग आ गया हूँ। मैं मां के पीछे-पीछे चलनेवाला बच्चा नहीं बनना चाहता। आप अपनी मोटर चाहते हैं, शौक से ले जाइये। मोटर की सवारी और बंगले में रहने के लिए पन्द्रह आदमियों को कुर्बान करना पड़ा है। कोई जगह पा जाऊँ, तो शायद पन्द्रह सौ आदमियों को कुर्बान करना पड़े। मेरी छाती इतनी मजबूत नहीं है। आप अपनी मोटर ले जाइए।

यह कहता हुआ वह मोटर से उतर पड़ा और जल्दी से आगे बढ़ गया।

                                         

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