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आज तो हजरत खूब मजे में आये। खुदा ने चाहा, तो दो चार दिन के बाद बीबी का नाम भी न लें।

दारोगा ने खुश होकर कहा--इसीलिए तो तुम्हें बुलाया था। मजा तो तब है कि बीवी यहाँ से चली जाय। फिर हमें कोई गम न रहेगा। मालूम होता है, स्वराज्यदालों ने उस औरत को मिला लिया है। यह सब एक ही शंतान हैं।

जोहरा की आमदोरफ्त बढ़ने लगी; यहाँ तक कि रमा खुद अपने चकमे में आ गया। उसने जोहरा से प्रेम जताकर अफसरों की नजर में अपनी साख जमानी चाही थी; पर जैसे बच्चे खेल में रो पड़ते हैं, वैसे ही उसका प्रेमाभिनय भी प्रेमोन्माद बन बैठा। जोहरा उसे अब वफ़ा और गुहब्बत की देवी-सी मालूम होती थी। वह जालपा की सी सुन्दरी न सही, पर बातों में उससे कहीं चतुर, हाव-भाव में कहीं कुशल, सम्मोहन कला में कहीं पटु थी। रमा के हृदय में नये-नये मनसूबे पैदा होने लगे।

एक दिन उसने जोहरा से कहा-जोहरा, जुदाई का समय आ रहा है। दो-चार दिन में मुझे यहां से चला जाना पड़ेगा। फिर तुम्हें क्यों मेरी याद आने लगी ?

जोहरा ने कहा- मैं तुम्हें न जाने दूंगी। यहीं कोई अच्छी सी नौकरी कर लेना। फिर हम तुम आराम से रहेंगे। .

रमा ने अनुरक्त होकर कहा--दिल से कहती हो जोहरा ? देखो तुम्हें मेरे सर की कसम, दगा मत देना। 
जोहरा --अगर यह खौफ़ हो तो निकाह पढ़ा लो। निकाह के नाम से चिढ़ हो तो ब्याह कर लो। पण्डितों को बुलाओ। अब इसके सिवा मैं अपनी मुहब्बत का और क्या सबूत दूं। 
रमा निष्कपट प्रेम का वह परिचय पाकर विह्वल हो उठा। जोहरा के मुंह से निकलकर इन शब्दों की सम्मोहक-शक्ति कितनी बढ़ गई थी। यह कामिनी, जिस पर बड़े-बड़े रईस फिदा हैं, मेरे लिए इतना बड़ा त्याग करने को तैयार है ! जिस खान में औरों को बालू ही मिलता है, उसमें जिसे सोने के डले मिल जायें, क्या वह परम भाग्यशाली नहीं है ? रमा के मन में कई दिनों तक संग्राम होता रहा। जालपा के साथ उसका जीवन कितना नीरस,
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