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चौकीदार-मैं जरा उनसे पूछ लूँ। मेरी रोजी क्यों ले रहे हैं हजूर?

रमा ने कोई जवाब न दिया। तेजी से सड़क पर चल खड़ा हुआ। जोहरा निस्पंद खड़ी हसरत भरी आँखों से देख रही थी। रमा के प्रति प्यार, ऐसा विकल करनेवाला प्यार, उसे कभी न हुआ था, जैसे कोई वीर-बाला अपने प्रियतम को समर-भूमि की ओर जाते देखकर गर्व से फूली न, समाती हो।

चौकीदार ने लपककर दारोगाजी से कहा। वह बेचारे खाना खाकर लेटे ही थे। घबराकर निकले, रमा के पीछे दौड़े और पुकारा-बाबू साहब, जरा सुनिए तो, एक मिनट रुक जाइए, इससे क्या फायदा-कुछ मालूम तो हो, आप कहाँ जा रहे हैं ? आखिर बेचारे एक बार ठोकर खाकर गिर पड़े। रमा ने लौटकर उन्हें उठाया और पूछा- कहीं चोट तो नहीं आयी?

दारोगा-कोई बात न थी, जरा ठोकर खा गया था। आखिर आप इस वक्त कहाँ जा रहे हैं ? सोचिए, तो इसका नतीजा क्या होगा ?

रमा०-मैं एक घंटे में लौट आऊँगा। जालपा को शायद मुखालिफों ने बहकाया है, कि तू हाईकोर्ट में एक अर्जी दे दे। जस उसे जाकर समझाऊँगा।

दारोगा-यह आपको कैसे मालूम हुआ ?

रमा--जोहरा कहीं सुन आयी है।

दारोगा०-बड़ी बेवफा औरत है। ऐसी औरत का तो सिर काट लेना चाहिए।

रमा०—इसीलिए तो जा रहा हूँ। या तो इसी वक्त उसे स्टेशन पर भेजकर आऊँगा, या इस बुरी तरह पेश आऊँगा, कि वह भी याद करेगी। ज्यादा बातचीत का मौका नहीं है। रातभर के लिए मुझे इस क़ैद से आजाद कर दीजिए।

दारोगा-मैं भी चलता हूँ, जरा ठहर जाइए।

रमा०-जी नहीं, बिल्कुल मामला बिगड़ जाएगा। मैं अभी आता हूँ।

दरोगा लाजवाब हो गये। एक मिनट तक खड़े सोचते रहे, फिर लौट पड़े और जोहरा से बातें करते हुए पुलिस स्टेशन की तरफ़ चले गये। उधर रमा ने आगे बढ़कर एक तांगा किया और देवीदीन के घर जा पहुंचा।

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