गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशाख । हो गया है, इसलिये कपिल के शुद्ध सांख्य मत को जानने के लिये दूसरे अन्यों को भी देखने की आवश्यकता होती है। इस काम के लिये उक्त सांख्यकारिका की अपेक्षा कोई भी अधिक प्राचीन ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है। भगवान् ने भगवद्गीता में कहा है कि 'सिद्धानां कपिलो मुनिः' (गी. १०. २६)-सिदा में कपिल मुनि मैं हूँ, इस से कपिल मुनि की योग्यता भली भाँति सिद्ध होती है। तथापि यह बात मालूम नहीं कि कपिल ऋषि कहाँ और कब हुए । शांतिपर्व (३४०, ६७) में एक जगह लिखा है कि सनत्कुमार, सनक, सनंदन, सनत्सुजात, सन, सनातन और कपिल ये सातों ब्रह्मदेव के मानस पुत्र हैं। इन्हें जन्म से ही ज्ञान हो गया था। दूसरे स्थान (शां. २१८) में कपिल के शिष्य आसुरि के चेले पञ्चशिख ने जनक को सांख्यशास्त्र का जो उपदेश दिया था उसका उल्लेख है। इसी प्रकार शांतिपर्व(३०१,१०८,१०८)में भीष्म ने कहा है कि सांख्यों ने सृष्टि-रचना इत्यादि के बारे में एक बार जो ज्ञान प्रचलित कर दिया है वही " पुराण, इतिहास, अर्थ- शास्त्र" आदि सव में पाया जाता है। यही क्यों; यहाँ तक कहा गया है कि " ज्ञानंच लोके यदिहास्ति किञ्चित् सांख्यागतं तच्च महन्महात्मनू " अर्थात् इस जगत् का सव ज्ञान सांख्यों से ही प्राप्त हुआ है (मभा. शां. ३०१. १०६) । यदि इस बात पर ध्यान दिया जाय कि वर्तमान समय में पश्चिमी ग्रंथकार उत्क्रान्ति-वाद का उपयोग सब जगह कैसे किया करते हैं, तो यह वात आश्चर्यजनक नहीं मालूम होगी कि इस देश के निवासियों ने भी उत्क्रांति-वाद की वरावरी के सांख्यशास्त्र का सर्वत कुछ अंश में स्वीकार किया है। 'गुरुत्वाकर्पण', सृष्टिरचना के 'उत्क्रांति- तत्त्व' या 'ब्रह्मात्मैक्य' के समान उदात्त विचार सैकड़ी वरसों में ही किसी महात्मा के ध्यान में आया करते हैं। इसलिये यह वात सामान्यतः सभी देशों के ग्रन्थों में पाई जाती है कि, जिस समय जो सामान्य सिद्धान्त या व्यापक तत्त्व समाज में प्रचलित रहता है, उस के आधार पर ही किसी अन्य के विषय का प्रतिपादन किया जाता है। आज कल कापिल सांख्यशास्त्र का अभ्यास प्रायः लुप्त हो गया है, इसी लिये यह प्रस्तावना करनी पड़ी। अब हम यह देखेंगे कि इस शास्त्र के मुख्य सिद्धान्त कौन से हैं। सांख्यशास्त्र का पहला सिद्धान्त यह है कि, इस संसार में नई वस्तु कोई भी उत्पन्न नहीं होती; क्योंकि, शून्य से, अर्थात् जो पहले था ही नहीं उससे, शून्य को छोड़ और कुछ भी प्राप्त हो नहीं सकता। इललिये यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिये कि उत्पन्न हुई वस्तु में, अर्थात् कार्य में, जो गुण देख
- Evolution Theory के अर्थ में उत्क्रान्ति-तत्त्व ' का उपयोग आजकल किया
जाता है । इसलिये हमने मी यहाँ उसी शब्द का प्रयोग किया है । परन्तु संस्कृत में 'उत्क्रान्ति' शब्द का अर्थ मृत्यु है। इस कारण उत्क्रान्ति-तत्त्व' के वदन् गुण-विकास, गुणोत्कर्ष, या गुणपरिणाम आदि सांख्य-वादियों के शब्दों का उपयोग करना हमारी समझ में अधिक योग्य होगा।