पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । अंध में सात सौ श्लोक है। और, वर्तमान समय की सब पोथियों में भी उतने ही श्लोक पाये जाते हैं । इन सात सौ श्लोकों में से १ श्लोक धृतराष्ट्र का है, ४० संजय के, ८० अर्जुन के और ५७५ भगवान् के हैं । परन्तु, बंबई में गणपत कृष्णाजी के छापेखाने में मुद्रित महाभारत की पोथी में भीष्मपर्व में वर्णित गीता के अठारह अध्यायों के बाद जो अध्याय प्रारंभ होता है, उसके (मर्थात् भीष्मपर्व के तेता- क्षीसवें अध्याय के) प्रारम्भ में साढ़े पाँच श्लोकों में गीता-माहात्म्य का वर्णन किया गया है और उसमें कहा है:- पद्शतानि सर्विशानि श्लोकानां प्राह केशवः । अर्जुनः सप्तपञ्चाशत् ससपष्टिं तु संजयः । धृतराष्ट्रः श्लोकमेकं गीताया मानमुच्यते ।। अर्थात् "शीता में केशव के ६२०, अर्जुन के ५७, सञ्जय के ६७ और तराष्ट्र का 25 इस प्रकार कुल मिलाकर ७४५ श्लोक है।" मद्रास इलाके में जो पाठ प्रचलित है उसके अनुसार कृष्णाचार्य-द्वारा प्रकाशित महाभारत की पोधी में ये श्लोक पाये जाते हैं परन्तु कलकत्ते में मुद्रित महाभारत में ये नहीं मिलते; और, भारत-टीकाकार नीलकंठ ने तो इनके विषय में यह लिखा है कि इन ५३ श्लोकों को " गौः न पठ्यन्ते । अतएव प्रतीत होता है कि ये प्रक्षित है। परन्तु, यद्यपि इन्हें प्रक्षिप्त मान लें; तथापि यह नहीं बतलाया जा सकता कि गीता में ७४५ श्लोक भांद वर्तमान पोथियों में जो ७०० श्लोक हैं उनसे ४५ श्लोक अधिक) किसे और का मिले । महाभारत यड़ा भारी ग्रन्थ है, इसलिये संभव है कि इसमें समय समय पर अन्य श्लोक नोड़ दिये गये हों तथा कुछ निकाल डाले गये हों । परन्तु यह यात गीता के विषय में नहीं कही जा सकती । गीता-अन्य सदेव पठनीय होने के कारण वेदों के सहश पूरी गीता को करामन करनेवाले लोग भी पहले बहुत थे, और अब तक भी कुछ हैं ! यही कारण है कि वर्तमान गीता के बहुत से पाठा- न्तर नहीं हैं, और जो कुछ भिन्न पाठ हैं वे सब टीकाकारों को मालूम हैं। इसके सिवा यह भी कहा जा सकता है, कि इसी हेतु से गीता-अन्य में बराबर ७०० शोक रखे गये है कि उसमें कोई फेरफार न कर सके। अव प्रश्न यह है, कि बंबई तथा मद्रास में मुद्रित महाभारत की प्रतियों ही में ४५ श्लोक-और, वे भी सब भगवान् ही के ज्यादा कहाँ से आगये? सञ्जय और अर्जुन के श्लोकों का जोड़, वर्तमान प्रतियों में और इस गणना में, समान अर्थात् १२४ है और ग्यारहवें अध्याय के" पश्यामि देवान्० " (११. १५-३१) आदि १७ श्लोकों के साथ, मत-भेद के कारण सम्भव है, कि अन्य दश श्लोक भी सञ्जय के समझे जावे, इसलिये कहा जा सकता है, कि यद्यपि सञ्जय और अर्जुन के श्लोकों का जोड़ समान ही है, तथापि प्रत्येक के श्लोकों को पृथक् पृथक् गिनने में कुछ फर्क हो गया होगा । परन्तु इस बात का कुछ पता नहीं लगता कि वर्तमान प्रतियों में भगवान् के जो ५७५