पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाग १-गीता और महाभारत । ..१० अपर्याप्त पूरा शोक। भीष.५१.६ १. १२-१६ तक आठलोक। भीष्म, ५१.२२-२९, कुछ भेद रहते हुए, शेष गीता के लोकों के समान ही है। १. ४५ महोबत महत्पा०लोक। मोण. १९७.५० कुछ शब्दभेद है, शेष गीता के लेक के समान। २. १८ नमी ती न विजानीतः। सोका । शान्ति. २२४.१४ कुछ पाठभेद होकर बलि- वासब-संपाद और कठोपनिषद् में (२ १८) २. २८ अव्यक्तादीनि भूतानि० लोक । सी. २. ६:९. ११. 'अन्यक्त' के बदले 'अभाव है, शेष सब समान हैं। २. ३१ धाद्धि युद्धा यो० लोका । भीभ. १२४. ३६. भीष्म कर्ग को यही स्तता रहे है। २. ३२ याच्याशोक। फर्ग.५७.२.पा के बदले कर्णपद रखकर दुर्योधन कर्ण से कह रहा । २. ४६ यावान् मर्य उदपाने० शोक । ऊयोग. ४५.२६ सनत्सुजातीय प्रकरण में कुछ शब्दभेद से पाया जाता है। २.५६ विपया विनिवर्तन्ते. लोक। शान्ति. २०४..१६ मनु बृहस्पति-संगद में अक्षरशः मिलता है। २.६७ इंद्रियाणां हि चरतां० लोक । यन. २१०.२६ मापाग-ल्याधस्वाद में कुछ पाठभेद से भाया है और पहले रथ का रूपक भी दिया गया है २.७ पापूर्यमाणमचलप्रतिष्टं० लोक । शान्ति. २५०. ९ शुकान-प्रश्न में ज्यों का रयों आया है। ३. ४२ इंद्रियाणि पराण्याहुः शोक । शान्ति. २४५. ३और २४७.२ का कुछ पाठ- भेद से गुकानु-प्रश्न में दो बार आया है। परन्तु इस लोक का मूल स्थान कठोपनिषद में है (कठ. ३.१०)। ४.७ यदा यदा हि धर्मस्य० शोक। वन. १८९. २७. मार्कंडेय प्रश्न में ज्यों का त्यों है। ४.३१ नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य० लोका । शान्ति. २६७. ४० गोकापिलीयाख्यान में पाया जाता है और सब प्रकरण यश. विषयक ही है। १. ४० नायं लोकोऽस्ति न परो० शोकाप । वन. १९९. ११०. मार्कंडेय-समस्यापर्व में शब्दशः मिलता है। 1