भाग १ -गीता और महाभारत । १७. ३ श्रद्धामयोऽयं पुरुष: शेगा। सि.२६६. १७ गुलापार जागा 15. अधिष्ठान तपा कतांजा mer. ३७. ७ नागपना धर्म में कफ सुलगा से पर पांच हा ६. फि २७ परे लोक भार १२ औका, गीता सपा महामारत के मितभिस प्रकरणों में, फही कहीं लो भयशः भार कहाँ करीगुच पाठान्तर छोकर, एकही से भार, पदि पूरी सर जॉन की जाये सो और भी परोरे शोको नया लोकाशी का मिलना सम्भव है । यदि यह देखना पा किदो हो भयया तीन सीन शब्द अगया लाक के धनुषीश (परण), गीता और महाभारत में कितने स्थानों पर एक से तो उपग. सालिका कहीं माधिक बहानी होगी । पराप शम्म साम्प फे मतिरिक, मेवल उपर्युग सालिका मोक-साना काही विचार करें तो पिना यक नहीं रखा जा सकगा, कि महाभारत के अन्य मशा और गीता में दोनों एक ही संगनी फे फल । पदि प्रत्येक प्रपरगा पर पिचार शिपा जाप सो सहमतीनो सायगा, कि उपयुंग. ३३ लोकों में से । माया में, मागसमस्या में मालगा-पाध-सपाद में, २ पिपुरनीति में सनायुगातीग में. ३ मनु-पति-संगार में, ६३ शकानुमभ में, मुलाभार-जागनिरंपाद में, यलिए रान मार पाया जनपपाद में. ६ भारायणीय धर्म में, २ अनुगीता में, भार शंग मीमोगा. m सीपर्व में पलाय। इनमें से प्रायः सप जगा ये मोम पूधापर संदर्भ के साग उचित स्थानों पर ही मिलते हैं--प्रक्षित नहीं है पीर, या मी प्रतीत होता है, किनमें से फार शोक गीता ही में समारोप टि में लिये गये हैं। बाहरणार्थ, "सहमयुग पर्यत" (गी... १७) म श्लोक के परगापं पहले वर्ष मार गुग की प्यापा पतमाना आपरपस गा; और महाभारत (शा. २३१) सपा मनुस्मृति में इस लोक के पहले उनके लश भी कहे गये हैं। परन् गीता में गह लोक युग भादि की प्यारया म पतला फर, एकदम कहा गया है । इस टि में विचार करने पर यह नहीं कहा जा सकता, फि महाभारत के अन्य प्रकरणों में ये शेर गीता ही से • पदि रस दृष्टि से संपूर्ण गहागारत देशा जाप, ती गीता और महामाररा में समान सोमपाद भाग मरण सी से भी अधिक देना पड़ेगा न दिये जाते है:- किं भोगनायितेन या (गो. १. ३२). Aryपमो (गी. २.३), प्रायले महतो भयाव (२ ४०), अशानास्य मत गुम (२. ६६ ), उत्सापरिभ लोकाः (३.२४) मनो दुनि- ग्राई गलग (६.३५), ममात्मा भूसमापनः (९.५), मोगा मोकामागः (५.१२), समः सणु भूतेषु (९.२९), दीमागलापंसिल (११. १७), समृदित रताः (१२. ४). तुल्यानदारसुतिः (१२. १९) गधो योगाभा (१२. १९), मगरोटाममनन- (१४.२४) गिविधा पार्मचाहना (१८.१८), निर्मनः शानः (१८. ५३), भूयार पाल्पते (१८.५३) स्यादि।
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