पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५८५

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५४६ गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । बातें प्राचीन पौराणिक ब्रह्मांडवर्णन के अनुसार ही हैं और इस विषय में हमारे यहाँ किसी को कुछ कहना भी नहीं है। परन्तु बेबर नामक पश्चिमी संस्कृतज्ञ पंडित ने इस कथा का विपर्यास करके यह दीर्घ शंका की थी, कि भागवतधर्म में वर्णित भक्तितत्त्व श्वेतद्वीप से अर्थात् हिन्दुस्थान के बाहर के किसी अन्य देश से हिन्दुस्थान में लाया गया है, और भक्ति का यह तत्त्व अस समय ईसाईधर्म के अतिरिक और कहीं भी प्रचलित नहीं था इसलिये ईसाई देशों से ही भक्ति की कल्पना भागवतधर्मियों को सूझी है। परन्तु पाणिनि को वासुदेव-भक्ति का तत्व मालूम था और बौद्ध तथा जैनधर्म में भी भागवतधर्म तथा भक्ति के उल्लेख पाये जाते हैं, एवं यह वात भी निर्विवाद है, कि पाणिनि और बुद्ध दोनों ईसा के पहले हुए थे। इसलिये अब पश्चिमी पंडितों ने ही निश्चित किया है, कि बेवर साहब की उपर्युक्त शंका निराधार है। ऊपर यह बतला दिया गया है, कि भक्तिरूप धर्माङ्ग का उदय हमारे यहाँ ज्ञान-प्रधान उदनिषदों के अन- न्तर हुआ है। इससे यह बात निर्विवाद प्रगट होती है, कि ज्ञानप्रधान उपनिषदों के बाद तथा बुद्ध के पहले वासुदेवमति-संबंधी भागवतधर्म उत्पन्न हुभा है। भव प्रश्न केवल इतना ही है, कि वह बुद्ध के कितने शतक' पहले उत्पन्न हुआ? अगले विवेचन से यह वात ध्यान में आ जायगी, कि यद्यपि उक प्रश्न का पूर्ण- तया निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता, तथापि स्थूल दृष्टि से उस काल का मंदाज़ करना कुछ असंभव भी नहीं है। गीता (१.२) में यह कहा है, कि श्रीकृष्ण ने जिस भागवतधर्म का उपदेश अर्जुन को किया है उसका पहले लोप हो गया था। भागवतधर्म के तत्त्वज्ञान में परमेश्वर को वासुदेव, जीव को संकर्षण, मन को प्रधुम्न तथा अहंकार को अनि रुद कहा है। इनमें से वासुदेव तो स्वयं श्रीकृष्ण ही का नाम है, संकर्षण उनके ज्येष्ठ प्राता बलराम का नाम है, तथा प्रद्युम्न और अनिरुद्ध श्रीकृष्ण के पुत्र और पौत्र के नाम हैं। इसके सिवा इस धर्म का जो दूसरा नाम 'सात्वत ' भी है, वह उस यादव-जाति का नाम है जिसमें श्रीकृष्णजी ने जन्म लिया था। इससे 'भकिमान् ( पाली-मत्तिमा ) शब्द थेरगाथा (शो. ३७०) में मिलता है और एक जातक में भी भक्ति का उल्लेख किया गया है । इसके सिवा, प्रसिद्ध फ्रेंच पाली-पंडित सेना ( Senart) ने बौद्धधर्म का मूल ' इस विषय पर सन् १९०९ में एक व्याख्यान दिया था, जिसमें स्पष्टरूप से यह प्रतिपादन किया है, कि भागवतधर्म बौद्धधर्म के पहले का I "No one will claim to derive from Baddhism Vishnnism of the yoga, Assuredly. Buddhism is the barrower," "To sum ap, if there had not previonsly existed a religion made up of dootrines of yoga, of Vishnuite legends, of devotion to Visnuh Krishna, worshipped under the title of Bhagavata, Buddhism .