वर्तमान गीता का काल ! ५.५६ प्रधान होने पर भी भागे उसका भति-प्रधान स्यस्प हो कर संत में विशिष्टाईत का भी उसमें समायरा हो गया। मूल गीता तथा मूल भागवतधर्म के विषय में इस- से मधिक ज्ञान, निदान यतमान समय में तो मानुग नहीं है और यही दशा पचास वर्ष पहले वर्तमान गीता तया महाभारत की भी गी। परन्तु साक्टर भांगर. कर. परलोकवासी काशीनाथपंत महंग, परलोकयासी शेफर बालकृपा दीक्षित, सपा रावयहादुर चितामगिगराय पंध प्रति विद्वानों के उपयोग से वर्तमान गीता एवं पर्तमान महाभारत का माल निक्षित करने के लिये यथेष्ट साधन उपलब्ध हो गये हैं। पार, सभी हाल ही में स्वर्गवासी व्यापक गुरनाय काळे ने दो-एक प्रमाण और भी यतलाये हैं। इन मय को एकरित फर, तथा हमारे मत से उनमें जिन यातों का मिलाना ठीक बैंचा, उनको भी मिला कर परिशिष्ट का यह भाग संप में जिला गया। इस परिशिष्ट प्रकरण के प्रारम्भ ही में हमने यह बात प्रमागा- सहित दिखला दी कि वर्तमान महाभारत तथा वर्तमान गीला, दोनों अंघ एक ही प्यारी द्वारा रचे गग। यदि इन दोनों अंगों को एफवी व्यरिद्वारा रचे गगे पान एफकालीन मान तो महाभारत के काल से गीता का काल भी सहन ही निश्चित हो जाता है । सतपय इस भाग में पहले वे प्रमागा दिये गयेई. जो पतमान महाभारत का काज निक्षित करने में अत्यंत प्रधान माने जाते और उनके बाद स्वतंत्र रीति से ये प्रमागा दिये गये हैं जो परामान गीता का काल निक्षित करने में उपयोगी है। ऐसा करने का उद्देश यह ई, कि महाभारत का फालनिय करने के जो प्रमागाई. यदि किसी को संदिग्ध प्रतीत हो तो भी उनके कारण गीता के काल का निर्णय करने में कोई बाधा न होने पाये। महाभारत काल निर्णय महामारत-अन्य यदुत बड़ा ई थौर उसी में यह लिसा ६ कि यह लबालीकात्मक है। परन्तु रापयहादुर बैग में, महाभारत के अपने टोकारमा अंग्रेजी अन्य के पहले पारीशद में यह यतलाया है, कि जो महाभारत-अन्य इस समय उपलब्ध है, उसमें लाल श्लोकों की सांध्या में कुछ न्यूना- धिकता हो गई है, और यदि उनमें हरिवंश के श्लोक मिला दिये जाये तो भी योग- फल एक लाग्य नहीं होता । तपापि यह माना जा सकता है कि भारत का महा- भारत होने पर जो वृहत अन्य तैयार हुआ, वह प्रायः वर्तमान ग्रन्थ ही सा होगा अपर यतता चुके हैं, कि इस महाभारत में यास्क के निरक्त तथा मनुसंहिता का उल्लेख और भगवद्गीता में तो ब्रह्मसूत्रों का भी उल्लेख पाया जाता है।सय इसके प्रति- रिफ, महाभारत के काल का निगाय करने के लिये जो प्रमागा पाये जाते हैं, ये हैं:- (१) अठारह पों का यह प्रन्थ तथा हरिवंश, ये दोनों संवत् ५३५ और ६३५ के दर्मियान जापा और बाली द्वीपों में थे, तथा वहाँ की प्राचीन कवि ' नामक TheJahabharatse: a criticism, P. ISB. रा. व. बंध के महाभारत के जिस रकिात्मक प्रेय का हमने कहीं कही उल्लेख किया है, वह यही पुस्तक है ।
पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५९८
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