पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५९९

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गीतारहत्य अयवा कर्मयोग-परिशिष्ट । भाषा में उनका अनुवाद हुआ है। इस अनुवाद के ये- पाठ पर्व-मांदि, विराट, उद्योग, नीप्न, आमवासी, मुसल, प्रस्थानिक और स्वर्गारोहण-बानी द्वीप में इस समय उपलब्ध हैं और उनमें से कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं। यद्यपि अनुवाद कवि भाषा में मिया गया है, तथापि उसमें ध्यान ध्यान पर महाभारत के मूल संस्कृत श्लोक ही रखे गये हैं। उनमें से उद्योगपर्व के लोगों की जाँच हमने की है। वे सब लोक वर्तमान मधाभारत की, कलकत्ते में प्रकाशित, पोथी के उद्योगपर्व के अध्यायों में-धीच बीच में क्रमश:-सिलवे हैं। इससे सिद्ध होता है कि लब- लोकात्मक नहाभारत संवत् ५३५ के पहले लगभग दो सौ वर्ष तक हिन्दुस्थान में प्रसाणभूत माना जाता था । श्योंकि, यदि वह यहाँ प्रमाणभूत न हुआ होता, तो जावा तया याली द्वीपों में उसे न ले गये होते । तिब्बत की भाषा में भी महामारत का अनुवाद हो चुका है, परन्तु यह उसके बाद का है। (२) गुप्त राजाओं के समय का एक शिक्षालेत घाल में उपलब्ध हुआ है कि जो चदि संवत् ९७ अर्थात् विक्रमी संवत ५०२ में लिखा गया था। उसमें इस बात का स्पष्ट रीति से निर्देश किया गया है, कि उस समय महाभारत-अन्य एक लाख लोगों का था और इससे यह प्रगट हो जाता है, कि विक्रमी संवत् ५०२ के लगमग दो सौ वर्ष पहले उसका अस्तित्व अवश्य होगा। (३) आजकल भास कवि के मो नाटक अन्य प्रकाशित हुए हैं, उनमें से अधिनांत महामारत के पाख्यानों के आधार पर रचे गये हैं। इससे प्रगट है, कि उस समय महानारत टपलब्ध था और वह प्रमाण भी माना जाता था। भास कविश्व वालचरित नाटक में श्रीकृष्ण जी की शिशु अवस्था की बातों कात्यागोपियाँ का ग्लेन पाया जाता है। अतएव यह कहना पड़ता है, कि हरिवंश भी उस समय अस्तित्व में होगा। यह वात निर्विवाद सिद्ध है, कि भात कवि कालिदास से पुराना है। मांस कविकृत नाटकों के संपादक परिढत गणपति शाली ने, स्वप्न- वासवदत्ता नामक नाटक की प्रस्तावना में लिखा है,कि मास चाणक्य से भी प्राचीन ईक्योंकि माल कवि के नाटक न एक श्लोक चाराश्य के अर्थशास्त्र में पाया जाता है, और उसमें यह बतलाया है कि वह किसी दूसरे का है। परन्तु यह काल यद्यपि कुछ संदिग्ध माना जाय, तथापि इमारे मत से यह बात निर्विवाद है, कि, मास कवि का समय सन् इसवी के दूसरे तथा तीसरे शतक के और भी इस और का नहीं माना जा सकता। जावाहोप के महाभारत का ब्योरा The lodern Rerietr, July, 1914 PP. 32-38 में दिया गया है, और निको भाग में अनुवादित महाभारत का च्छेड Rockhill's Life of the Buddhist, p. 228 note IST यह शिलालेख Inseriptionum Indixarum नामक पुस्तक के तृतीय संह के पृ० १३४ में पूनच्या दिया हुआ है और स्वर्गवान शंकर पाटन दौनित ने उसका च्छेच अने भारतीय ज्योतिधान्य (पृ० १०८) में किया है।