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पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६०१

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५६२ गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । 3 पर देवालयों के बदले एडूक होंगाबुद्ध के वाल तथा दाँत प्रभृति किसी स्मारक वस्तु को जमीन में गाड़ कर उस पर जो खंभ, मीनार या इमारत वनाई जाती थी, उसे एक कहते थे और आजकल उसे " ढागोवा” कहते हैं। डागोवा शब्द संस्कृत " धातुगर्भ " (=पाली डागव) का अपनंश है, और " धातु " शब्द का अर्थ भीतर रक्खी हुई स्मारक वस्तु है। सीलोन तथा ब्रह्मदेश में ये डागोवा कई स्थानों पर पाये जाते हैं। इससे प्रतीत होता है, कि बुद्ध के बाद-परन्तु अवतारों में उसकी गणना होने के पहले ही-महाभारत रचा गया होगा। महाभारत में 'बुद्ध ' तथा 'प्रतिबुद्ध' शब्द अनेक बार मिलते हैं (शां. १६४.५८,३०७.४७ ३५३. ५२)। परन्तु वहाँ केवल ज्ञानी, जाननेवाला अथवा स्थितप्रज्ञ पुरुष, इतना ही अर्थ उन शब्दों से अभिप्रेत है। प्रतीत नहीं होता, कि ये शब्द बौद्धधर्म से लिये गये हों; किन्तु यह मानने के लिये दृढ़ कारण भी है, कि बौद्धों ही ने ये शब्द वैदिक धर्म से लिये होंगे। काल-निर्णय की दृष्टि से यह वात भत्यंत महत्वपूर्ण है, कि महाभारत में नक्षत्रगणना अश्विनी आदि से नहीं है, किन्तु वह कृत्तिका प्रादि से है (ममा. अनु. ६४ और ८९), और मेष-वृषभ आदि राशियों का कहीं भी उल्लेख नहीं है। क्योंकि इस बात से यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है, कि यूनानियों के सहवास से हिन्दुस्थान में मैप-वृपम आदि राशियों के माने के पहले, अर्थात् सिक- न्दर के पहले ही, महाभारत-ग्रन्थ रचा गया होगा । परन्तु इससे भी अधिक महत्त्व की बात श्रवण आदि नक्षत्रमाणना के विषय की है । अनुगीता (ममा. अश्व. ४४.२ और आदि.७१.३४) में कहा है, कि विश्वामित्र ने श्रवण आदि की नक्षत्र-गणना प्रारम्भ की और टीकाकार ने उसका यह अर्थ किया है, कि उस समय श्रवण नक्षत्र से उत्तरायण का प्रारम्भ होता था--इसके सिवा उसका कोई दूसरा ठीक ठीक अर्थ भी नहीं हो सकता । वेदांगज्योतिप के समय उत्तरायण आरम्भ धनिष्ठा नक्षत्र से हुआ करता था। धनिष्ठा में उदगयन होने का काल ज्योति- गणित की रीति से शक के पहले । लगभग १५०० वर्ष आता है। और ज्योति- गणित की रीति से उदगयन को एक नक्षत्र पीछे हटने के लिये जगभग हजार वर्ष लग जाते हैं। इस हिसाब से श्रवण के आरम्भ में उदगयन होने का काल शक के पहले लगभग ५०० वर्ष आता है। सारांश, गणित के द्वारा यह बतलाया जा सकता है, कि शक के पहले ५०० वर्ष के लगभग वर्तमान महाभारत बना होगा। परलोकवासी शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने अपने भारतीयज्योति शास्त्र में यही अनुमान किया है (भा.ज्यो. पृ.८७-८०, १११ और १४७ देखो)। इस प्रमाण की विशेषता यह है, कि इसके कारण वर्तमान महाभारत का काल शक के पहले ५०० वर्ष से अधिक पीछे हटाया ही नहीं जा सकता। (८) रावबहादुर वैद्य ने महाभारत पर नो टीकात्मक ग्रंथ अंग्रेज़ी में लिखा है, उसमें यह बतलाया है, कि चंद्रगुप्त के दरबार में (सन् ईसवी से लगभग ३२०