भाग ५ - वर्तमान गीता का काल । ५६३ वर्ष पहले) रहनेवाले मेगस्यनीज़ नामक ग्रीक वकील को महाभारत की कथाएँ मालूम थीं। मेगस्पनीज़ का पूरा ग्रंथ इस समय उपलब्ध नहीं है, परन्तु उसके अवतरण कई ग्रंथों में पाये जाते हैं। वे सब, एकत्रित करके, पहले जर्मन भाषा में प्रकाशित किये गये और फिर मेडिकल ने उनका अंग्रेजी अनुवाद किया है । इस पुस्तक (पृष्ट २००-२०५) में कहा है, कि उसमें वर्णित हेरेकीज़ ही श्रीकृष्ण है भार मेगस्थनीज़ के समय शौरसेनी लोग, जो मथुरा के निवासी थे, उसी की पूजा किया करते थे। उसमें यह भी लिखा है, कि हेरेलीज़ अपने मूलपुरुप डायोनिसस से पंद्रहवाँ था। इसी प्रकार महाभारत (अनु. १४७. २५-३३ ) में भी कहा है, कि श्रीकृष्ण वक्षप्रजापति से पंद्रहवें पुरुष हैं । और, मेगस्थनीज़ ने कर्णप्रावरण, एकपाद, लजाटान आदि अद्भुत लोगों का (पृष्ठ ७४), तथा सोने को ऊपर निका- लनेवाली चीटियों (पिपीलिकाओं) का (पृ०६४), जो वर्णन किया है, वह भी महाभारत (सभा. ५५ और ५२) ही में पाया जाता है। इन बातों से और अन्य बातों से प्रगट हो जाता है, कि मेगस्थनीज़ के समय केवल महाभारत ग्रंथ ही नहीं प्रचलित था, किन्तु श्रीकृष्ण-चरित्र तथा श्रीकृष्णपूजा का भी प्रचार हो गया था यदि इस बात पर ध्यान दिया जाय, कि उपर्युक्त प्रमाण परस्पर-सापेक्ष अर्थात् एक दूसरे पर अवलम्बित नहीं है, किन्तु वे स्वतंत्र हैं, तो यह वात निस्सन्देह प्रतीत होगी, कि वर्तमान महाभारत शक के लगभग पांच सौ वर्ष पहले आस्तित्व में जरूर था। इसके बाद कदाचित् किसी ने उसमें कुछ नये श्लोक मिला दिये होंगे अथवा उसमें से कुछ निकाल भी डाले होंगे। परन्तु इस समय कुछ विशिष्ट श्लोकों के विपय में कोई प्रश्न नहीं है -प्रश्न तो समूचे ग्रंथ के ही विषय में है और यह बात सिद है, कि यह समस्त ग्रंथ शक-काल के कम से कम पांच शतक पहले ही रचा गया है। इस प्रकरण के प्रारम्भ ही में हमने यह सिद्ध कर दिया है, कि
- See MCrindle's Ancient Indis- Megasthenes and Arrian
200-205 मेगस्थनीज़ का यह कथन एक वर्तमान खोज के कारण विचित्रतापूर्वक दृढ़ हो गया है । वैवर्ष सरकार के Aroheological Department की १९१४ ईसवी की Progress Report हाल ही में प्रकाशित हुई है। उसमें एक शिलालेख है,जो ग्वालि- यर रियासत के भेलसा शहर के पास वेसनगर गांव में सांववाथा नामक एक गरुडध्वज, स्तंभ पर मिला है। इस लेख में यह कहा है कि रेलिमोडोरस नामक एक हिंदू बने हुए यवन अर्थात ग्रीक ने इस स्तंभ के सामने वासुदेव का मन्दिर वनवाया और यह यवन वहाँ के भगभद्र नामक राजा के दरबार में तक्षशिला के ऐंटिआल्किंडस नामक ग्रीक राजा के एलची की हैसियत से रहता था। टिआल्किडस के सिक्कों से अब यह सिद्ध किया गया है, कि यह .. ईसा के पहले १४० वें वर्ष में राज्य करता था। इससे यह वात पूर्णतया सिद्ध हो जाती है, कि उस समय वासुदेवभक्ति प्रचलित थी; केवल इतना ही नहीं किन्तु यवन लोग भी वासु- देव के मन्दिर पनवाने लगे थे ! यह पहले ही वतला चुके हैं, कि भेगस्थनीज़ ही को नहीं किन्तु पाणिनि को भी वासुदेव भाक्त मालम थी। pp.