पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६०३

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गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट. गीता समस्त महाभारत ग्रन्थ का ही एक माग है-यह कुछ उसमें पीछे नहीं मिलाई गई है। अतएव गीतों का भी कान वही मानना पडता है, जो कि महाभारत का है। संभव है, कि मूल गीता इसके पहले की हो क्योंकि जैसा इसी प्रकरण के चौथे भाग में बतलाया गया है, उसकी परंपरा बहुत प्राचीन समय तक इटानी पड़ती है। परन्तु, चाहे जो कुछ कहा जाय, यह निविदाद सिद्ध है कि उसका काल महाभारत के बाद का नहीं माना जा सकता । यह नहीं, कि यह बात केवल उप. र्युक्त प्रमाणों ही से सिद्ध होती है। किन्तु इसके विषय में स्वतंत्र प्रमाण भी देख पड़ते हैं। श्रव आगे वन स्वतंत्र प्रमाणों का ही वर्णन किया जाता है। गीता-काल का निर्णयः-ऊपर जो प्रमाण बतलाये गये है, उनमें गीता का स्पष्ट अर्थात् नामतः निर्देश नहीं किया गया है। वहीं गीता के काल का निर्णय महाभारत काल से किया गया है। अब यहाँ क्रमशः वे प्रमाण दिये जाते हैं जिनमें गीता का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। परन्तु पहले यह बतला देना चाहिये कि परलोकवासी तैलंग ने गीतों को आपस्तंव के पहले की अर्थात् ईसा से कम से कम तीन सौ वर्ष से अधिक प्राचीन कहा है, और डाक्टर भांडारकर ने अपने "वैष्णव, शैव आदि पंथ नामक अंग्रेज़ी ग्रन्थ मेंप्रायः इसी काल को स्वीकार किया है। प्रोफेसर गावे के मतानुसार तैलंग द्वारा निश्चित किया गया काल ठीक नहीं। सनका यह कथन है, कि मूलगीता ईसा के पहले दूसरी सदी में हुई और ईसा के बाद दूसरे शतकमै उसमें कुछ सुधार किये गये हैं। परन्तु नीचे लिखेप्रमाणों से यह बात भली भाँति प्रगट हो जायगी, कि गार्वे का वक कथन ठीक नहीं है। (१) गीता पर जो टीकाएँ तथा भाष्य उपलब्ध है, उनमें शांकरभाष्य अत्यन्त प्राचीन है। श्रीशंकराचार्य ने महाभारत के सनत्सुजातीय प्रकरण पर भी भाष्य लिखा है और उनके ग्रंथों में महाभारत के मनु वृहस्पति-संवाद, शुकानुप्रश्न और अनुगीता में से बहुतेरे वचन अनेक स्थानों पर प्रमाणार्थ लिये गये हैं। इससे यह वात प्रगट है, कि उनके समय में महाभारत और गीता दोनों ग्रंथ प्रमाणभूत माने जाते थे। प्रोफेसर काशीनाथ बापू पाठक ने एक साम्प्रदायिक श्लोक के भाधार पर श्रीशंकराचार्य का जन्म-काल ८४५ विक्रमी संवत् (७१० शक) निश्चित किया है। परन्तु हमारे मत से इस काल को सौ वर्ष और भी पीछे हटाना चाहिये । क्योंकि, महानुभाव पंथ के " दर्शन-प्रकाश " नामक ग्रंथ में ग्रह कहा है, कि " युग्मपयोधि- रसान्वितशाके" अर्थात् शक ६४२ (विक्रमी संवत् ७७७) में, श्रीशंकराचार्य गुहा में प्रवेश किया, और उस समय उनकी आयु ३२ वर्ष की थी; अतएव यह सिद्ध होता है, कि उनका जन्म शक ६३० (संवत् ७४५) में हुआ। हमारे मत में

  • See Telang's Bliagavadgita S. B. E. Vol. V111. Intro. pp.

2 and 34; Dr. Bhandarkar's Vaishnavism, Shaivism and other Sects, p, 13; Dr; Garbe’s Die Bhagavadgita, P, 64,