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पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६६४

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गीता, अनुवाद और टिप्पणी-२ अध्याय । ६२५ विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ १७ ॥ अंतवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः। अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्मायुध्यस्व भारत ॥ १८ ॥ य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यत हतम् । उभी तीन विजानते नायं हन्ति न हन्यते ॥ १९ ॥ न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। मजो नित्यः शाश्वतीय पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥२०॥ वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । (१७) स्मरण रहे कि, यह सम्पूर्ण (जगत् ) जिसने फैलाया अथवा व्याप्त किया है, पह (मूल धात्मस्वरूप ब्रह्म) अविनाशी है। इस अव्यय तत्व का विनाश करने के लिये कोई भी समर्थ नहीं है। । [पिछले श्लोक में जिस सत् कहा है, उसी का यह वर्णन है। यह बतला दिया गया कि शरीर का स्वामी अर्थात् यात्मा ही नित्य श्रेणी में आता है। अब यह बतलाते है, फि अनित्य या असत् किसे कहना चाहिये-] (१८) कहा है, कि जो शरीर का स्वामी (आत्मा) नित्य, अविनाशी और अचिन्त्य है, उसे प्राप्त होनेवाले ये शरीर नाशवान अर्थात् अनित्य हैं। अतएव है मारत! तू युद्ध फर! i [सारांश, इस प्रकार नित्य-अनित्य का विवेक करने से तो यह भाव ही झूठा होता है, कि “ मैं अमुक को मारता हूँ," और युद्ध नकरने के लिये अर्जुन {ने जो कारण दिखलाया था, वह निर्मूल हो जाता है। इसी अर्थ को अब और अधिक स्पष्ट करते हैं-] (E) (शरीर के स्वामी या आत्मा) को ही जो मारने वाला मानता है या ऐसा समझता है, कि वह मारा जाता है, उन दोनों को ही लथा ज्ञान नहीं है। क्योंकि) यह (प्रात्मा) न तो मारता है और न मारा ही जाता है। [क्योंकि यह बात्मा नित्य और स्वयं अकर्ता है, खेल तो सब प्रकृति का ही है। कंठोपनिपद में यह और अगला श्लोक पाया है (कठ. २. १८, १९)। इसके अतिरिक्त महाभारत के अन्य स्थानों में भी ऐसा वर्णन है, कि काल से सब प्रसे हुए हैं, इस काल की क्रीड़ा को ही यह "मारने और मरने " की लौकिक संज्ञाएँ हैं (शां. २५. १५)। गीता (११.३३) में भी आगे भक्तिमार्ग की भाषा से यही तत्व भगवान् ने अर्जुन को फिर बतलाया है, कि भीष्म-द्रोण आदि को कालस्वरूप से मैं ने ही पहले मार डाला है, तू केवल निमित्त हो जा।] (२०) यह (यात्मा) न तो कभी जन्मता है और न मरता ही है। ऐसा भी नहीं है, कि यह ( एफ यार) हो कर फिर होने का नहीं; यह प्रज, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, एवं शरीर का वध हो जाय तो भी मारा नहीं जाता । (२१) हे गी र ७९