गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । ३२ है तात! पढितों ने क्षमा के लिये कुछ अपवाद भी कहे हैं (ममा. वन. २८.६, ८)। इसके बाद कुछ मौकों का वर्णन किया गया है जो क्षमा के लिये उचित है। तथापि प्रल्हाद ने इस बात का उल्लेख नहीं किया कि इन नाकों को पहचानने का तत्त्व या नियम क्या है। यदि इन मोडों को पहचाने विना, सिर्फ अपवादों का ही कोई उपयोग करे, वो यह दुराचरण समझा जायगा, इसलिये यह जानना अत्यंत आवश्यक और महत्व का है कि इन नौकों को पहचानने का नियम क्या है। दूसरा तत्व "सत्य" है, जो सब देशों और धर्मों में भली भांति माना जाता और प्रमाण समझा जाता है । सन्य का वर्णन कहाँ तक किया जाय? घेद में सत्य की महिमा के विषय में कहा है कि सारी सृष्टि की उत्पत्ति के पहले तं' और सत्य' उत्पन्न हुए; और सत्य ही ले पालाश, पृथ्वी, वायु प्रादि पळमहा. भूत स्थिर है-"ऋतज्ञ सत्यं चामोद्वारपसोऽध्यजायत " (... १६०.), " सत्यनांतभिसा भूमिः " (. १०८५.१) !'सत्य' शब्द का धात्वयं भी यही है रहनेवाला' अर्थात् " जिसका कभी प्रभाव नही" अथवा 'विकाल. अबाधित ' इसी लिये सत्य के विषय में कहा गया है कि 'सत्य के सिया भारधर्म नहीं है, सत्य ही परमल 'महाभारत में कई जगह इस वचन याउलेख किया गया है कि नास्ति सत्यात्परो धर्मः' (शां. १६२. २४) औरयह भी लिखा है कि:- अश्वमेघमहतं च सत्यं च तुलया धृतम् । अश्वमेधसहलादि, सत्यमेव विशिष्यते ।। हज़ार अश्वमेध और सत्य की तुलना की जाय तो सत्य ही अधिक होगा (आ. ७४. १०२)। यह वर्णन सामान्य सत्य के विषय में ना। सत्य के विषय में मनुजी एक विशंप बात और कहते हैं ( १. २५६ ):- घाच्या नियताः सर्वे वाङ्मूला वाग्विनिःसृताः तां तु यः स्तेनयेद्वाचं स सस्तेयकृतरः ॥ " मनुष्यों के सब व्यवहार वाणी से हुमा करते हैं। एक के विचार दूसरे को बताने के लिये शब्द के समान अन्य साधन नहीं है। वही सव व्यवहारों का आश्रय-स्थान और वाणी का मूल सोता है। जो मनुष्य उसको मलिन कर ढालता है, अर्थात् जो वाणी की प्रतारणा करता है, वह सब पूंजी घी की चोरी करता है" । इसलिये मनुने कहा है कि ' सत्यपूतां यदेवाचं (मनु. ६. ४६)-जी सत्य से पवित्र किया गया हो, वही याला जाय । और और धनी से सत्य ही को पहला स्थान देने के लिये उपनिपद में भी कहा है 'सत्यं वद । धर्म चर' (ते. १.११.१)। जय बागों की शय्या पर पड़े पड़े भीष्म पितामह शान्ति और अनु शासन पर्षों में, युधिष्ठिर को सब धर्मों का उपदेश दे चुके तय प्राण छोड़ने के पहले " सत्येषु यतितव्यं वः सत्यं हि परमं बलं " इस वचन को सब धमों का 21
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