पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/७९६

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गीता, अनुवाद और टिप्पणी -१० अध्याय । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामंत एव च ॥ २० ॥ आदित्यानामहं विष्णुज्योतिषां रविरंशुमान् । मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥ २१ ॥ घेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः। इंद्रियाणां मनश्चालिम भूतानामारंभ चेतसा ॥ २२ ॥ का प्रादि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ । (२) (पारह) आदित्यों में विष्णु मैं तेजस्वियों में किरणमानी सूर्य, (सात अथवा उनजास) मरुतों में मरीचि और नक्षत्रों में चन्द्रमा में हूँ। (२२) मैं वेदों में सामवेद हूँ देवताओं में इन्द्र हूँ और इन्द्रियों में मन हूँ भूतों में चेतना अर्थात् प्राण की चलन-शक्ति मैं हूँ। यहाँ वर्णन है कि मैं घेदों में सामवेद हूँ, अर्थात् सामवेद मुख्य है। ठीक ऐसा ही महाभारत के अनुशासन पर्व (१४. ३१७) में भी " सामवेदव्य वेदानां यजुषां एतरुद्रियम् " कहा है । पर अनुगीता में कारः सर्व वेदानाम् । (अश्व. ४४.६) इस प्रकार, सब पेड़ों में कार को ही श्रेष्ठता दी है तथा पहले गीता (७. ८) में भी "प्रणवः सर्ववेदेषु " कहा है । गीता १. १३७ के " अक्सामयजुरेव च" इस वाक्य में सामवेद की अपेक्षा ग्वेद का अग्रस्थान दिया गया है और साधारण लोगों को समझ भी ऐसी ही है । इन परस्पर-विरोधी वर्णनों पर कुछ लोगों ने अपनी कल्पना को खूब सरपट दौड़ाया है। छान्दोग्य उपनिषद् में ॐकार ही का नाम उद्गधि है और लिखा है, कि यह उद्गीथ सामवेद का सार है और सामवेद ऋग्वेद का सार है" (बां... १.२) स्म वेदों में कौन घेद श्रेष्ठ है, इस विषय के भिन्नभिन्न उक्त विधानों का मेल खान्दोग्य के इस वाक्य से हो सकता है। पयोंकि सामवेद के मन्त्र भी मूल ग्वंद से ही लिये गये हैं। पर इतने ही से सन्तुष्ट न होकर कुछ लोग कहते हैं, कि गीता में सामवेद फो यहाँ पर जो प्रधानता दी गई , इसका कुछ न कुछ गूढ कारण होना चाहिये । यद्यपि छान्दोग्य उपनिषद में सामवेद को प्रधानता दी है, तथापि मनु ने कहा है कि " सामवेद की ध्वनि प्रशुचि है" (मनु. १. १२४) । अतः एक ने अनुमान किया है, कि सामवेद को प्रधानता दिनेवाली गीता मनु से पहले की होगी; और दूसरा कहता है कि गीता बनाने. वाला सामवेदी होगा, इसी से उसने यहाँ पर सामवंद को प्रधानता दी होगी। परन्तु इमारी समझ में “मैं वैज्ञों में सामवेद हूँ " इसकी उपपत्ति लगाने के लिये इतनी दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। भक्तिमार्ग में परमेधर की गानयुक्त स्तुति को सदैव प्रधानता दी जाती है। उदाहरणार्थ नारायणीयधर्म में नारद ने भगवान् का वर्णन किया है कि "वेदेषु सपुराणेषु लाडोपासपु गीयले" (मभा. शां. ३३४. २३) और वा राजा " जप्यं जगौ "जय गाता था (देखो शां. ३३७. २०; और ३४२. ७० और इस प्रकार गै' धातु का