पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/८८३

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गीतारहत्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ न्युदस्य च ॥ ५१ ।। विविक्तलेवी लम्बाशी यतवाकायमानसः। ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः ॥ ५२ ॥ अहंकारं वलं दर्प काम क्रोध परित्रहम् । विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥ ५३॥ वह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति । समः सर्वेषु भूतेषु मद्भलिं लभते पराम् ॥ ५४ ॥ भक्त्या मामसिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः। ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्या विंशते तदनंतरम् ॥ ५५॥ सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्यपाश्रयः। मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमन्ययम् ॥ ५६ ॥ शब्द आदि (इन्द्रियों के) विषयों को छोड़ करके और प्रीति एवं द्वेष को दूर कर, (५२) 'विविक्त' अर्थात् चुने हुए अथवा एकान्त स्थल में रहनेवाला, मिताहारी, काया-वाचा और मन को वश में रखनेवाजा, नित्य ध्यानयुक्त और विरक, (५३) (तथा अहंकार, वल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह अर्थात् पाश को छोड़ कर शान्त एवं ममता से रहित सुनुन्य ब्रह्ममूत होने के लिये समर्थ होता है। (५४) ब्रह्मभूत हो जाने पर प्रसन्नचित्त होकर वह न तो किसी की मात्रांना ही करता है, और न किसी का द्वेष ही; तथा समस्त प्राणिमात्र में सम हो कर मेरी परम भक्ति को प्राप्त कर लेता है । (५५) भक्ति से टसको मेरा तात्त्विक ज्ञान हो जाता है मैं कितना हूँ और कौन हूँ, इस प्रकार मेरी तात्विक पहचान हो जाने पर वह मुझमें ही प्रवेश करता है। (५६) और मेरा ही मात्रय कर, सब कर्म करते रहने पर भी उसे मेरे अनुग्रह से शाश्वत एवं अव्यय स्थान प्राप्त होता है। 1 [ध्यान रहे कि सिद्धावस्था का उक्त वर्णन कर्मयोगियों का है-कर्मसंन्यास करनेवाले पुरुषों का नहीं है। थारम्म में ही वें और वें श्लोक में कहा है किंउक्त वर्णन भासक्ति छोड़ कर कर्म करनेवालों का है, तथा अन्त के ५६ श्लोक में " सर्व कर्म करते रहने पर भी" शब्द आये हैं। उक्त वर्णन मक्तों के अथवा त्रिगुणातीतों के वर्णन के ही समान है। यहाँ तक कि कुछ शब्द मी उसी वर्णन से लिये गये हैं। उदाहरणार्थ, ५३वें श्लोक का 'परिग्रह' शब्द छठवें अध्याय (६.१०) में योगी के वर्णन में आया है। ५४वें श्लोक का “न शोचति न काचति " पद वारहवें अध्याय (१२. १७) में भक्तिमार्ग के वर्णन में है और विविक्त (अर्थात् चुने हुए, एकान्त स्थन में रहना) शब्द १३वें अध्याय के १०व, श्लोक में आ चुका है। कर्मयोगी को प्राप्त होनेवाली उप- पर्युक्त अन्तिम स्थिति और कम-संन्यासमागे से प्राप्त होनेवाली अन्तिम स्थिति