पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१०८

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२. मार्क्सवाद और धर्म पवित्र, धर्ममूर्ति, भगवानके दूत और पारसा समझते है -कम से कम उनका यही विश्वास होता है। यही कारण है कि ये गरीब ठगे जाते है और मालदार-जमीदारोके घर घीके चिराग जलते है । धर्मके नामपर यदि और नही हो सका तो किसानो और मजदूरोके सघ ही अलग-अलग बनवा दिये जाते है । जब कभी वर्ग-सघर्ष चालू हो तो ये धर्माचार्य कहे जानेवाले पादरी, पुरोहित और मुल्ला अपनेको धर्मके ठेकेदार कहके नियमत धनियो और मालदारोका ही साथ देते है और शोषितो एव पीडितोको छोड देते हैं, हालाँकि वही इनके चेले होते और उन्हीसे इनकी गुजर होती है। २. मार्क्सवाद और धर्म "Religion cannot be stopped Conscience can- not be stilled. Religion is a matter of conscience and conscience is free. Worship and religion are free" (Stalinto Dean of Canterbury.) "धर्मको रोका नहीं जा सकता। अन्तरात्मा या हृदयको दबाया नहीं जा सकता। धर्म तो हृदयकी चीज है और हृदय है स्वतंत्र । इसी- लिये पूजा और धर्म स्वतंत्र है।" (स्तालिनका उत्तर)। यही कारण है-~-यह एक प्रमुख कारण है--जिसके करते मार्क्सवादमे धर्मका विरोध पाया जाता है। धर्मको मानवसमाजके लिये अफीम (Religion is the opium of the people) qarit यही असली वजह है । क्योकि शोषितो तथा पीडितोंपर धर्माचार्योंका जादू चल जाता है और उनके उत्थानके लिये होनेवाला सारा यत्न बेकारसा हो जाता है । ऐसी परीशानी होती है कि कुछ कहिये मत। हम मानते है कि धर्मके सम्बन्धमे मार्क्सवादकी निश्चित बाते है और पक्के मार्क्सवादी