६६ गीता-हृदय इन मामलेमे बुनियादी तौरपर अलग जाते और कोई रियायत करनेको तैयार नही है । लेनिनने धर्म-सम्बन्धी अपने एक लेसमे कहा है कि "मानर्मवाद तो भौतिकवाद है। इसीलिये वह बेमुरव्वतीके साथ धर्मका farra brat" “Larxism is matcrialism. As such it is ruthlessly hostils to rcligion" ATT garer मचान नहीं है । यदि ठडे दिलसे विचारे तो पता चलेगा कि इसकी तहमे और चीज है । मभी सिद्धान्तकी स्थापना और प्रतिपादनके मूलमे कुछ वाम वाने और परिस्थितियाँ रहती है और अगर हम उनपर ययाल न करे तो गलती कर सकते है। माक्सबादका मूल सिद्धान्त द्वन्द्वताद (dialectics) है और उसका यदि अवाध प्रयोग किया जाय और दूसरी बात हो भी नहीं मकती तो श्रेणीविहीन समाजके बन जानेके बाद भी यह द्वन्द्ववाद तो चालू रहेगा ही। उसका परिणाम क्या होगा, कौन कहे ? यदि द्वन्द्ववादसे प्रगति होती है तो यह तो मानना ही होगा कि वर्गविहीन समाज मी प्रगतिके नावनोमे पूर्णरूपेण सम्पन्न होनेके कारण और भी उन्नति करेगा, सभी तरहकी उन्नति-शारीरिक, मानसिक, वैज्ञानिक प्रादि- जिसके फलस्वम्प कौन-कौनरो अजात तत्त्व विदित होगे यह कौन बताये ? मानवाद तो श्रेणीविहीन समाज तक ही फिलहाल रुक जाता है । दर- अाल बात यह है कि जानका ठेकेदारी ले लेना अच्छा नही, बुद्धिमाना नहीं । यदि उस समय ईश्वर या प्रात्माका पता लग जाय तो क्या इनकार किया जागा, मिर्फ इसीलिये कि गानर्मवाद उमे नहीं मानना ? बुद्धिमानी इमाम है कि भविप्यके भामेले में न पदे और उसका रास्ता किनीके भी निय बन्द न करे--माहे पर विरवाद। वरनेवाला हो या अनीश्वरवाद। रहनेवाला हो। हाँ, ग्राज मके करते दिवान है, आज बरबाद प्रगनिका बापत। क्योकि जिम जानपर ही उनका टिक पकना या न
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