पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२१८

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२१६ गीता-हृदय पश्चिमी दार्शनिकोने किसी चीजके और खासकर समाज और सृष्टिके विवेचनके तीन तरीके माने है, जिन्हे पौजिटिव (Positive), थियो- लोजिकल (Theological) और मेटाफिजिकल (Metaphysical) नाम दिया गया है। मेटाफिजिक्स अध्यात्मशास्त्रको कहते है, जिसमें आत्मा-परमात्माका विवेचन होता है और थियोलोजी कहते है धर्मशास्त्र- को, जिसमे स्वर्ग, नर्क तथा दिव्यशक्ति-सम्पन्न लोगोका, जिन्हें देवता कहते है, वर्णन और महत्त्व पाया जाता है । पौजिटिवका अर्थ है निश्चित रूपसे प्रतिपादित या सिद्ध किया हुआ, बताया हुअा। कोन्तके मतसे किसी पदार्थको दैवी या आध्यात्मिक कहना ठीक नहीं है। वह इन वातोको बेवकूफी समझता है। उसके मतसे कोई चीज स्वाभाविक (Natural) भी नही कही जा सकती। ऐसा कहना अपने आपके अज्ञानका सबूत देना है। किन्तु हरेक दृश्य पदार्थोका जो कुछ ज्ञान होता है वही हमें पदार्थोके स्वरूपोको बता सकता है और उसीके जरिये हम किसी वस्तु के बारेमे निर्णय करते है कि कैसी है, क्या है आदि । बेशक, यह ज्ञान आपेक्षिक होता है-देश, काल, परिस्थिति और पूर्व जानकारीकी अपेक्षा करके ही यह ज्ञान होता है, न कि सर्वथा स्वतत्र । इसी ज्ञानके द्वारा उसके पदार्थोका विश्लेषण करके जो कुछ स्थिर किया जाता है वही पौजिटिव है, असल है, वस्तुतत्त्व है। इसी प्रणालीको लोगो ने आधिभौतिक विवे- चनकी प्रणाली कहा है। इसे ही मैटिरियलिस्टिक मेथड (Materialistic method) भी कहते है। शेष दो को क्रमश आधिदैवत एव आध्यात्मिक विवेचन प्रणाली कहते है। आधिदैवत प्रणालीमे दिव्य शक्तियोकी सत्ता स्वीकार करके ही आगे बढते है । उसमे मानते है कि ऐसी अलौकिक ताकते हैं जो ससारके वहुतसे कामोको चलाती है। बिजलीका गिरना, चन्द्र-सूर्य आदिका भ्रमण तथा निश्चित समयपर अपने स्थानपर पहुँच जाना, जिससे ऋतुग्रो-