पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५० गीता-हृदय परमाणु आते गये और चावल कीमती बन गया। यदि पुराने नही जाते और नये नही पाते तो यह वात न हो पाती। परमाणुओका कोष भी कर्मोके अनुसार बनता है, बना रहता है। ईश्वर उसका नियत्रण करता है । जव बुरे कर्मोंकी दौर आई तो घुन खागये, चावल सड गये या और कुछ हो गया। उनमे अच्छे परमाणु प्राके मिले भी नहीं। यही तरीका सर्वत्र जारी है, ऐसा प्राचीन दार्शनिकोने माना है। यो तो कर्मोंके और भी अनेक भेद है। ऐसे भी कर्म होते है जिनका काम है केवल कुछ दूसरे कर्मों- को खत्म (Negative) कर देना । ऐसे भी होते है जो अकेले ही कई कर्मोके वरावर फल देते है । मगर इतने लवे पँवारेसे हमें क्या मतलब योगसूत्रोके भाष्य और दूसरे दर्शनोको पढके यह बाते जानी जा सकती हैं। 9 , अवतारवाद इतने लम्बे विवरणके बाद अब मौका आता है कि हम अवतारवादके सम्वन्धमे इन कर्मोको लगाके देखे कि कर्मवाद वहाँ किस प्रकार लागू होता है । यह तो कही चुके है कि समष्टि कर्मोंके फलस्वरूप पृथिवी आदि पदार्थ वनते है जिनका ताल्लुक एक-दोसे न होके समुदायसे है, समाजसे है, मानव-ससारसे है, सभी पदार्थोस है। यदि यह ढूँढने लगे कि पृथिवी- को किस एक व्यक्तिके कर्मने तैयार किया कराया, तो यह हमारी भूल होगी। एकसे तो उसका सम्बन्ध है नही । पृथिवीके चलते हजारो-लाखो- को सुख-दु ख भोगना है, गल्ला पैदा करना है, घर बनाना है, कपडा तैयार करना है-होना है। उससे तलवारे, भाले, तोपे, गोले, लाठियां बनके जाने कितने मरें-मारेगे। फिर एकके कर्मका क्या सवाल ? पृथिवी आदि पदार्थ एकके कर्मसे क्यो वनेगे? जरा यही वात अवतारोके विषयमे भी लगा देखे। आखिर अव- तारोका काम क्या है ? उनसे होता क्या है ? उनकी भली-बुरी उप- ?