पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३६८

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योग और योगगास्त्र ३७३ यहाँतक कि वेदके अग व्याकरणादिमे भी गान ही कहा गया है। मगर वहाँ तो गान-ताल-स्वरके साथ-असभव है। हम आपका गुण गाते रहते है, ऐसा कहने का अर्थ केवल वयान ही होता है, न कि राग और तालके माथ गाना । यही वात गीता या भगवद्गीतामे भी है । उपनिषद स्त्री- लिंग तथा अनेक है। इसीलिये 'गीतासु'मे स्त्रीलिंग और बहुवचन प्रयोग है, जैसा कि बहुवचन 'उपनिषत्सु'मे है। आमतौरसे गीता गब्द भी इसीलिये स्त्रीलिंग हो गया। नही तो 'गीत' होता। यदि गौरसे देवा जाय तो गीतामे मौके-मौकेसे कुल २८ वार "श्रीभगवानुवाच" गब्द आये है। इनमे केवल ग्यारहवे अध्यायमे चार वार, दूसरे और छठेमे तीन-तीन वार, तीसरे, चौथे, दसवे और चौदहवेमे दो-दो वार तथा शेष अध्यायोंमे एक-एक बार आये है । इनका अर्थ है कि "श्रीभगवान् बोले।" चाहे श्रीभगवान कहे या श्रीमद्भगवान् कहे, दोनोका अर्थ एक ही है। इसमे स्पष्ट हो जाता है कि गीतामे जो कुछ उपदेश दिया है या वर्णन किया है वह श्रीमद्भगवान्ने ही । वस, इसीलिये इसका नाम श्रीमद्भग- वद्गीता हो गया, न कि किसी और कारणसे । इतने से ही जाने कहाँसे नारायणीयधर्मको यहाँ उठा लाना और गीताके माथे उसे पटकना बहुत दूरकी कौडी लाना है। योग शब्दके बारेमे जरा और भी कुछ जान लेना अच्छा होगा । गीता में केवल योग शब्द प्राय १३५ वार आया है । प्राय. उसीके मानीमे उसी युज् धातुसे वने युञ्जन्, युत्त्का, युक्त आदि शब्द भी कई वार आये है । नगर उन्हे छोडके सीधे योग गब्द हर अध्यायके अन्तके समाप्ति सूचक सकल्प वाक्यमे दो-दो बार आये है। इस प्रकार यदि इन ३६को निकाल बाहर करे तो प्राय सौ बार गीताके भीतरके श्लोकोमे यह गव्द पाया जायगा । इनमे चौधे, पांचवे, छठे तथा आठवे आदिमे कुछ बार पातजल योगके अर्थमे ही यह शब्द ग्राया है, या ऐने अर्थमे हो जिसमे पातजल 1