पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/४२२

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दूसरा अध्याय ४२६ तीन है। फिर उनमे रहनेवाली आत्माये भी तीन क्यो न हो ? तो उसका उत्तर यह है कि- देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्षीरस्तत्र न मुह्यति ॥१३॥ जिस तरह आत्मा या जीवके इस गरीरकी लडकपन, जवानी, बुढापा (ये तीन दशाये होती है), ठीक उसी तरह दूसरी देहो-जन्मो--की प्राप्ति भी है। (इसलिये) उस वातमे समझदार (कभी) धोकेमे नही पडता है ।१३॥ इसके सम्बन्धमें ज्यादा बाते पहले ही कही जा चुकी है और यह बात खूव साफ की जा चुकी है । कहने का निचोड यही है कि जिस प्रकार इस जन्ममे बालपन, वुढापा और जवानीके तीन विभिन्न एव भूत, वर्तमान तथा भविष्य कालवर्ती शरीरोमे एक ही आत्मा सभी मानते है, जरा भी शक नहीं करते और न धोकेमे पडते है । ठीक उसी प्रकार तीन या ज्यादा जन्मोकी भूत, वर्तमान और भावी देहोमे भी एक ही आत्मा क्यो न मानी जाय ? तर्क-युक्ति तो दोनो जगह एक ही है। एक शरीरकी तीनो अवस्थाये भूत, वर्तमान और भविष्यकी तो हई । वाल्यावस्थाकी अपेक्षा यद्यपि जवानी एव बुढापा भविष्यकी चीजे है। फिर भी वाल्यके गुजरने पर जवानी ही वर्तमान होती है, वालपन भूत और बुढापा भावी । श्लोकमे तीन अवस्थाये जो शरीरकी दिखाई गई है वह एक दूसरेसे विल्कुल ही जुदी है और उन्हीमे सारा शरीर गुजर जाता है। इन तीन अवस्थानोंसे यहाँ कोई खास मतलब यह नहीं है कि कितने वर्ष तक कौनसी रहती है। यहाँ वालकी खाल खीचना है नही । इस प्रकार तर्क दलीलोले आत्माकी अमरता सिद्ध तो हो गई । मगर ससारका काम सिर्फ तर्क दलीलोसे ही तो नहीं चलता। यहाँ तो कुछ ठोस वाते है जिनसे इनकार किया जा सकता है नहीं, और उन्हीके अनुसार