७४८ गीता-हृदय दृष्टि दिये देता हूँ। (फिर बेखटके) मेरा ईश्वरी योग या करिश्मा देख लो।६।७।८। यहाँ सातवे श्लोकमे जो यह कहा है कि और भी जो कुछ देवना चाहते हो देख लो, “यच्चान्यद्रष्टुमिच्छसि", उसका मतलब यही मालूम पडता है कि अर्जुनने जो शुरूमे ही कहा था कि यह भी तो निश्चय नही कि हमी जीतेगे या वही लोग, उसको कृष्ण भूले नही है और इशारेसे ही कह देते है कि यह भी अपनी आँखो देख लो कि कौन जीतेगा। सचमुच आगे जो यह दिखाई पडा कि भीष्मादि सभी भगवानके मुंहमे घुसे जा रहे है वह तो नई बात ही थी न ? उसकी तो अब तक चर्चा भी नही हुई थी। वह बात अर्जुनके मनमे थी जरूर। इसीलिये तो उसने शक जाहिर किया था। ताहम उसकी खुली चर्चा हुई न थी। फिर भी देखनेको वह भी मिली। पछने पर कृष्णने आगे कहा भी कि सबोका सहार करने चला हूँ। सजय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन् महायोगेश्वरो हरि । दर्शयामास पार्थाय परम रूपमैश्वरम् ॥६॥ मजयने (घतराष्ट्रसे) कहा-हे राजन्, महायोगेश्वर कृष्णने ऐसा कहके चटपट अर्जुनको (अपना इस तरहका) विलक्षण ईश्वरीय रूप दिखा ही तो दिया ।। अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् । अनेकदिव्याभरण दिव्यानकोद्यतायुधम् ॥१०॥ दिव्यमाल्याम्बरधर दिव्यगन्धानुलेपनम् । सर्वाश्चर्यमय देवमनन्त विश्वतोमुखम् ॥११॥ उस रूपमें बहुत ज्यादा मुंह और आँखे है, बहुतेरी निराली दर्शनीय बातें है, बहुतसे दिव्य अलकार है, अनेक प्रकारके दिव्य (एव) सजे
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