७५२ गीता-हृदय कते) हुए आपके मुंहोको देखके ही मुझे न तो दिशाये स्झती है और न चैन, ही मिल रहा है। (इसलिये) हे देवेश, हे जगदाधार, प्रसन्न हो जाइये--कृपा कीजिये ।२५। अमी च त्वा धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहवावनिपालसधै। भीष्मो द्रोण. सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्य ॥२६॥ वस्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दष्ट्राफरालानि भयानकानि ।। केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सदृश्यन्ते चूणितैरुत्तमार्ग ॥२७॥ राजाअोके गिरोहके साथ ही ये सभी धृतराष्ट्रके चेटे अापके भीतर-- पेटमें- तेजीसे घुसे जा रहे है । भीष्म, द्रोण और यह कर्ण भी हमारे दलके प्रमुख योद्धायोके साथ, डाढोंसे विकराल दीखनेवाले आपके भयकर मुंहोमे, तेजीसे दौडे जा रहे है। किसी-किसीकी तो यह हालत है कि दाँतोके वीचमे ही सट गये है और उनके सर चूर्ण-विचूर्ण नजर आ रहे है।२६।२७। यथा नदीना बहवोऽम्बुवेगा. समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति । तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥२८॥ जिस तरह नदियोकी बहुतसी तेज धाराये समुद्रकी ही ओर दौडी चली जाती है, उसी तरह आपके धधक् जलते मुखोमें नरलोकके ये वीर बाँकुडे घुसे जा रह है ।२८। यथा प्रदीप्त ज्वलन पतगा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा। तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगा ॥२९॥ जिस प्रकार खूब तेज आगमे फतिंगे बड़ी तेजीसे घुस मरते है, वैसे ही आपके मुखोमें ये लोग भी बडी तेजीसे घुस रहे है ।२६। लेलिासे ग्रसमान. समताल्लोकान्समग्नान्वदनवद्भिः। तेजोभिरापूर्य जगत्समग्र भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ॥३०॥
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