सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
क़ातिल
१०५
 

दिया और एक कदम हटकर रिवाल्वर साधा। एक सेकेण्ड में माँ उठी। उसी वक्त गोली चली। मोटर आगे निकल गयी, मगर माॅ जमीन पर पड़ी तड़प रही थी।

धर्मवीर रिवाल्बर फेंककर माॅ के पास गया और घबराकर बोला --अम्माँ, क्या हुआ? फिर यकायक इस शोकभरी घटना की प्रतीति उसके अन्दर चमक उठी--वह अपनी प्यारी माॅ का कातिल है! उसके स्वभाव की सारी कठोरता और तेजी और गर्मी बुझ गयी। ऑसुओ की बढती हुई थरथरी को अनुभव करता हुआ वह नीचे झुका, और माॅ के चेहरे की तरफ़ ऑसुओ मे लिपटी हुई शर्मिन्दगी से देखकर बोला यह क्या हो गया, अम्माॅ! हाय, तुम कुछ बोलती क्यो नही! यह कैसे हो गया। अँधेरे में कुछ नजर भी तो नहीं आता। कहाँ गोली लगी, कुछ तो बताओ। आह! इस बदनसीब के हाथो तुम्हारी मौत लिखी थी। जिसको तुमने गोद मे पाला उसी ने तुम्हारा खून किया। किसको बुलाऊँ, कोई नजर भी तो नहीं आता!

माँ ने डूबती हुई आवाज़ मे कहा--मेरा जन्म सुफल हो गया बेटा। तुम्हारे हाथो मेरी मिट्टी उठेगी। तुम्हारी गोद में मर रही हूँ। छाती में घाव लगा है। ज्योंही तुमने गोली चलायी, मै तुम्हारे सामने खड़ी हो गयी। अब नहीं बोला जाता, परमात्मा तुम्हें खुश रखे। मेरी यह दुआ है। मैं और क्या करती बेटा। माॅ की आबरू तुम्हारे हाथ में है। मै तो चली!

क्षण भर बाद उस अँधेरे सन्नाटे में धर्मवीर अपनी प्यारी माँ के नीमजान शरीर को गोद में लिये घर चला तो उसके ठडे तलुओं से अपनी ऑसू-भरी आँखे रगड़कर आत्मिक आह्लाद से भरी हुई दर्द की टीस अनुभव कर रहा था।

--'आखिरी तोहफा' से