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सैलानी बंदर
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उसे लडकों पर लेशमात्र भी क्रोध न आता था। वह न रोती थी, न हँसती। पत्थर लग भी जाते तो चुप हो जाती थी।

एक लड़के ने कहा--तू कपडे क्यो नहीं पहनती? तू पागल नही तो और क्या है?

बुढ़िया--कपडे जाड़े मे सर्दी से बचने के लिए पहने जाते है। आजकल तो गर्मी है।

लड़का--तुझे शर्म नही आती?

बुढ़िया--शर्म किसे कहते है बेटा, इतने साधू-संन्यासी नगे रहते हैं, उनको पत्थर से क्यों नही मारते?

लडका--वे तो मर्द है।

बुढिया--क्या शर्म औरतो ही के लिए है, मर्दो को शर्म नहीं आनी चाहिए?

लड़का--तुझे जो कोई नो कुछ दे देता है, उसे तू खा लेती है। तू पागल नही तो और क्या है?

बुढ़िया--इसमे पागलपन की क्या बात है बेटा? भूख लगती है, पेट भर लेती हूँ।

लड़का--तुझे कुछ विचार नही है। किसी के हाथ की चीज़ खाते घिन नहीं आती?

बुढ़िया--घिन किसे कहते है बेटा, मैं भूल गयी।

लड़का--सभी को घिन आती है, क्या बता दूँ, घिन किसे कहते है।

दूसरा लडका--तू पैसे क्यो हाथ से फेक देती है ? कोई कपड़े देता है तो क्यों छोडकर चल देती है? पगली नहीं तो और क्या है?

बुढ़िया--पैसे, कपड़े लेकर क्या करूँ बेटा?

लडका--और लोग क्या करते है? पैसे-रुपये का लालच सभी को होता है।

बुढ़िया--लालच किसे कहते है बेटा, मैं भूल गयी!

लड़का--इसी से तो तुझे पगली नानी कहते है। तुझे न लोभ है, न घिन हैं, न विचार है, न लाज है। ऐसी ही को पागल कहते है।

बुढ़िया--तो यही कहो, मै पगली हूँ।

लड़का--तुझे क्रोध क्यो नहीं आता?

बुढ़िया--क्या जाने बेटा। मुझे तो क्रोध नहीं आता। क्या किसी को क्रोध भी आता है? मैं तो भूल गयी।

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