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गुप्त धन
 


काटन—आप कई बार हो आया है ? हम तो पहली दफा जाता है। सुना बहुत अच्छा शहर है?

खाँ—बहुत बड़ा शहर है हुजूर, मगर कुछ ऐसा बडा भी नही है।

काटनआप—कहाँ ठहरता है। वहाँ होटलो मे तो बहुत पैसा लगता है।

खाँ—मेरी हुजूर न पूछे, कभी कही ठहर गया, कभी कही ठहर गया। हुजूर के अकबाल से सभी जगह दोस्त है।

काटन—आप वहाँ किसी के नाम चिट्ठी दे सकता है कि मेरे ठहरने का बदोबस्त कर दे। हम किफायत से काम करना चाहता है। आप तो हर साल जाता है, हमारे साथ क्यों नही चलता।

खॉ साहब बड़ी मुश्किल में फंसे। अब बचाव का कोई उपाय न था। कहना पड़ा—जैसा हुजूर का हुक्म, हुजूर के साथ ही चला चलूगा । मगर मुझे अभी जरा देर है हुजूर।

काटन—ओ कुछ परवाह नही, हम आपके लिए एक हफ्ता ठहर सकता है। अच्छा सलाम। आज ही आप अपने दोस्त को जगह का इंतजाम करने को लिख दे। आज के सातवे दिन हम और आप साथ चलेगा। हम आपको रेलवे स्टेशन पर मिलेगा।

खाँ साहब ने सलाम किया, और बाहर निकले। तॉगेवाले से कहा—कुँअर शमशेरसिंह की कोठी पर चलो।

कुँअर शमशेरसिह खानदानी रईस थे। उन्हे अभी तक अंग्रेजी रहन-सहन की हवा न लगी थी। दस बजे दिन तक सोना, फिर दोस्तों और मुसाहिबों के साथ गपशप करना, दो बजे खाना खाकर फिर सोना, शाम को चौक की हवा खाना और घर आकर बारह-एक बजे रात तक किसी परी का मुजरा देखना, यही उनकी दिनचर्या थी। दुनिया मे क्या होता है, इसकी उन्हे कुछ खवर न होती थी। या हुई भी तो सुनी-सुनायी। खाँ साहब उनके दोस्तों में थे।

जिस वक्त खॉ साहब कोठी में पहुंचे दस बज गये थे, कुँअर साहब बाहर निकल आये थे, मित्रगण जमा थे। खॉ साहब को देखते ही कुँअर साहब ने पूछा—कहिए खाँ साहब, किधर से?

खाँ साहब—जरा साहब से मिलने गया था। कई दिन बुला-बुला भेजा,