बोले—आप भी अजीब आदमी है, खमीरा यहाँ कौन पीता है। मुद्दत हुई लोगों ने गुडगुड़ियाँ और फर्शियाँ गुदड़ी बाजार मे बेच डाली। थोड़े से दकियानूसी अब भी हुक्का गुड़गुड़ाते है लेकिन बहुत कम। यहाँ तो ईश्वर की कृपा से सभी नयी रोशनी, नये विचार, नये जमाने के लोग है और कन्यावाले यह बात जानते हैं, फिर भी सिगरेट नहीं भेजी। यहाँ कई सज्जन आठ-दस डिबिया रोज पी जाते है। एक साहब तो बारह तक पहुंच जाते है। और चार-पाँच डिबिया तो आम बात है। इतने आदमियों के बीच मे पांच सौ डिबिया भी न हो तो क्या हो। और बरफ़ देखी आपने, जैसे दवा के लिए भेजी है। यहाँ इतनी बरफ़ घर-घर आती है। मैं तो अकेला ही दस सेर पी जाता हूँ। देहातियों को कभी अकल न आयेगी, पढ़-लिख कितने ही जायें।
मैंने कहा—तो आपको अपने साथ एक गाड़ी सिगरेट और टन भर बरफ लेते आना चाहिए था।
वह स्तम्भित हो गये—आप भंग तो नहीं खा गये?
—जी नहीं, कभी उम्र भर नहीं खायी।
—तो फिर ऐसी ऊल-जलूल बाते क्यों करते हो?
—मैं तो सम्पूर्णतः अपने होश में हूँ।
—होश में रहनेवाला आदमी ऐसी बात नहीं कर सकता। हम यहाँ लड़का ब्याहने आये है, लड़कीवालों को हमारी सारी फ़रमाइशें पूरी करनी पड़ेगी, सारी। हम जो कुछ मांगेंगे उन्हें देना पड़ेगा, रो-रोकर देना पड़ेगा। दिल्लगी नहीं है। नाकों चने न चबवा दें तो कहिएगा। यह हमारा खुला हुआ अपमान है। द्वार पर बुलाकर जलील करना। मेरे साथ जो लोग आये हैं वे नाई-कहार नहीं है, बडे-बड़े आदमी है। मैं उनकी तौहीन नहीं देख सकता। अगर इन लोगों की यह जिद है तो बरात लौट जायगी।
मैंने देखा यह इस वक्त ताव में है, इनसे बहस करना उचित नहीं। आज जीवन में पहली बार, केवल दो दिन के लिए, इन्हें एक आदमी पर अधिकार मिल गया है। उसकी गर्दन इनके पाँव के नीचे है। फिर इन्हे क्यों न नशा हो जाय, क्यों न सिर फिर जाय, क्यों न उस पर दिल खोलकर रोब जमायें। वरपक्षवाले कन्यापक्षबालों पर मुद्दतों से हुकूमत करते चले आये है, और उस अधिकार को त्याग देना आसान नही। इन लोगों के दिमाग में इस वक्त यह बात कैसे आयेगी कि तुम कन्यापक्षवालो के मेहमान हो और वे तुम्हें जिस तरह रखना चाहें तुम्हें रहना पड़ेगा। मेहमान को जो