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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२५३

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क्रिकेट मैच
२५९
 


बिल्कुल वही भाव' जो मेरे दिल मे थे मगर उसकी जबान से निकलकर कितने असरदार और कितने आँख खोलनेवाले हो गये। मैंने कहा—आप ठीक कहती हैं। सचमुच यह हमारी कमजोरी है।

—आपको इस टीम में शरीक न होना चाहिए था।

—मै मजबूर था।

इस सुन्दरी का नाम मिस हेलेन मुकर्जी है। अभी इगलैण्ड से आ रही है। यही क्रिकेट मैच देखने के लिए बंबई उतर गयी थी। इगलैण्ड मे उसने डाक्टरी की शिक्षा प्राप्त की है और जनता की सेवा उसके जीवन का लक्ष्य है। वहाँ उसने एक अखबार मे मेरी तस्वीर देखी थी और मेरा जिक्र भी पढ़ा था तब से वह मेरे लिए अच्छा खयाल रखती है। यहाँ मुझे खेलते देखकर वह और भी प्रभावित हुई। उसका इरादा है कि हिन्दुस्तान की एक नयी टीम तैयार की जाय और उसमें वहीं लोग लिये जायें जो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के अधिकारी है। उसका प्रस्ताव है कि मै इस टीम का कप्तान बनाया जाऊँ। इसी इरादे से वह सारे हिन्दुस्तान का दौरा करना चाहती है। उसके स्वर्गीय पिता डा० एन० मुकर्जी ने बहुत काफ़ी सम्पत्ति छोड़ी है और वह उसकी सम्पूर्ण उत्तराधिकारिणी है। उसके प्रस्ताव सुनकर मेरा सर आसमान मे उड़ने लगा। मेरी जिन्दगी का सुनहरा सपना इतने अप्रत्याशित ढग से वास्तविकता का रूप ले सकेगा, यह कौन सोच सकता था। अलौकिक शक्ति में मेरा विश्वास नहीं मगर आज मेरे शरीर का रोआँ-रोआँ कृतज्ञता और भक्ति भावना से भरा हुआ था। मैने उचित और विनम्र शब्दों में मिस हेलेन को धन्यवाद दिया।

गाड़ी की घण्टी हुई। मिस मुकर्जी ने फर्स्ट क्लास के दो टिकट मँगवाये। मै विरोध न कर सका। उसने मेरा लगेज उठवाया, मेरा हैट खुद उठा लिया और बेधड़क एक कमरे में जा बैठी और मुझे भी अदर बुला लिया। उसका खानसामा तीसरे दर्जे में बैठा। मेरी क्रिया-शक्ति जैसे खो गयी थी। मैं भगवान जाने क्यों इन सब मामलो मे उसे अगुबई करने देता था जो पुरुष होने के नाते मेरे अधिकार की चीज थी। शायद उसके रूप, उसकी बौद्धिक गरिमा, उसकी उदारता ने मुझ पर रोब डाल दिया था कि जैसे उसने कामरूप की जादूगरनियो की तरह मुझे भेड़ बना लिया हो और मेरी अपनी इच्छा-शक्ति लुप्त हो गयी हो। इतनी ही देर में मेरा अस्तित्व उसकी इच्छा में खो गया था। मेरे स्वाभिमान की यह मांग थी कि मै उसे अपने लिए फ़र्स्ट क्लास का टिकट न मँगवाने देता और तीसरे ही दर्जे