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गुप्त धन
 


हाय तक़दीर और वाय तकदीर! अगर जानता कि यह शेरवानी और फ़ाउण्टेनपेन और रिस्टवाच यो मज़ाक का निशाना बनेगी, तो दोस्तो का एहसान क्यो लेता। नमाज बख्शबाने आया था, रोज़े गले पड़े। किताबो मे पढ़ा था गरीबी की हुलिया ऐलान है अपनी नाकामी का, न्योता देना है अपनी ज़िल्लत को। तजुर्बा भी यही कहता था। चीथड़े लगाये हुए भिखमगो को कितनी बेदर्दी से दुतकारता हूँ। लेकिन जब कोई हजरत सूफी-साफी बने हुए, लम्बे-लम्बे बाल कधों पर बिखेरे, सुनहरा अमामा सर पर बाँका-तिरछा शान से बाँधे, संदली रग का नीचा कुर्ता पहने, कमरे में आ पहुँचते है तो मजबूर होकर उनकी इज्जत करनी पड़ती है और उनकी पाकीजगी के बारे में हजारों शुबहे पैदा होने पर भी छोटी से छोटी रक़म जो उनकी नज़र की जाती है, वह एक दर्जन भिखारियो को अच्छा खाना खिलाने के सामान इकट्ठा कर देती। पुरानी मसल है--भेस से ही भीख मिलती है। पर आज यह बात गलत साबित हो गयी। अब बीवी साहिबा की वह तम्बीह याद आयी जो उसने चलते वक्त़ दी थी--क्यों बेकार अपनी बेइज्जती कराने जा रहे हो। वह साफ समझेंगे कि यह माँगे-जाँचे का ठाठ है। ऐसे रईस होते तो मेरे दरवाजे पर आते ही क्यों। उस वक्त मैने इस तम्बीह को बीबी की कमनिगाही और उसका गँबारपन समझा था। पर अब मालूम हुआ कि गँवारिनें भी कभी-कभी सूझ की बाते कहती है। मगर अब पछताना बेकार है। मैंने आजिज़ी से कहा--हुजूर कही मेरी भी परवरिश फरमाये।

बडे बाबू ने मेरी तरफ़ इस अन्दाज से देखा कि जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया का कोई जानवर हूँ और बहुत दिलासा देने के लहजे मे बोले--आपकी परवरिश खुदा करेगा। वही सब का रज्ज़ाक है। दुनिया जब से शुरू हुई तब से तमाम शायर, हकीम और औलिया यही सिखाते आये हैं कि खुदा पर भरोसा रख और हम है कि उनकी हिदायत को भूल जाते हैं। लेकिन खैर, मैं आपको नेक सलाह देने मे कजूसी न करूँगा। आप एक अखबार निकाल लीजिए। यकीन मानिए इसके लिए बहुत ज्य़ादा पढ़े-लिखे होने की ज़रूरत नही और आप तो खुदा के फजल से ग्रेजुएट है। स्वादिष्ट तिलाओं और स्तम्भन-बटियों के नुस्खे लिखिए। तिब्बे अकबर में आपको हजारों नुस्खे मिलेगे। लाइब्रेरी जाकर नक़ल कर लाइए और अखबार में नये नाम से छापिए। कोकशास्त्र तो आपने पढ़ा ही होगा। अगर न पढ़ा हो तो एक बार पढ़ जाइए और अपने अखबार में शादी के मज़ों के तरीक़े लिखिए। कामेन्द्रिय के नाम जितने ज्यादा आ सके, बेहतर है। फिर, देखिए