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बड़े बाबू
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कैसे डाक्टर और प्रोफ़ेसर और डिप्टी कलेक्टर आपके भक्त हो जाते है। इसका खयाल रहे कि यह काम हकीमाना अन्दाज़ से किया जाय। ब्योपारी और हकीमाना अन्दाज में थोडा फ़र्क है। ब्योपारी सिर्फ अपनी दवाओ की तारीफ़ करता है, हकीम परिभाषाओ और सूक्तियो को खोलकर अपने लेखों को इल्मी रंग देता है। ब्योपारी की तारीफ़ से लोग चिढ़ते है, हकीम की तारीफ़ भरोसा दिलानेवाली होती है। अगर इस मामले मे कुछ समझने-बूझने की ज़रूरत हो तो रिसाला दरवेश हाजिर है। अगर इस काम मे आपको कुछ दिक्क़त मालूम होती हो, तो स्वामी श्रद्धानन्द की खिदमत मे जाकर शुद्धि पर आमादगी ज़ाहिर कीजिए। फिर देखिए आपकी कितनी खातिर-तवाजो होती है। इतना समझाये देता हूँ कि शुद्धि के लिए फ़ौरन तैयार न हो जाइयेगा। पहले दिन तो दो-चार हिन्दू धर्म की किताबें मॉग लाइएगा। एक हफ्त़े के बाद जाकर कुछ एतराज कीजिएगा। मगर एतराज ऐसे हों जिनका जवाब आसानी से दिया जा सके। इससे स्वामीजी को आपकी छान-बीन और जानने की ख्वाहिश का यकीन हो जायगा। बस आपकी चाँदी है। आप इसके बाद इसलाम की मुखालिफत पर दो-एक मजमून या मज़मूनों का सिलसिला किसी हिन्दू रिसाले मे लिख देगे तो आपकी जिन्दगी और रोटी का मसला हल हो जायगा। इससे भी एक सहल नुस्खा है। तबलीगी मिशन में शरीक हो जाइए, किसी हिन्दू औरत, खासकर नौजवान बेवा, पर डोरे डालिए। आपको यह देखकर हैरत होगी कि वह कितनी आसानी से आपसे मुहब्बत करने लग जाती है। आप उसकी अँधेरी जिन्दगी के लिए एक मशाल साबित होगे। वह उज्र नहीं करती, शौक से इसलाम कबूल कर लेगी। बस, अब आप शहीदों में दाखिल हो गये। अगर आप जरा एहतियात से काम करते रहें तो आपकी जिन्दगी बड़े चैन से गुजरेगी। एक ही खेबे में दीनो-दुनिया दोनों ही पार है। जनाब लीडर बन जायेंगे। वल्लाह, एक हफ्त़े मे आपका शुमार नामी-गरामी लोगों में होने लगेगा, दीन के सच्चे पैरो। हज़ारों सीधे-सादे मुसलमान आपको दीन की डूबती हुई किश्ती का मल्लाह समझेंगे। फिर खुदा के सिवा और किसी को ख़बर न होगी कि आपके हाथ क्या आता है और वह कहाँ जाता है और खुदा कभी राज़ नहीं खोला करता, यह आप जानते ही है। ताज्जुब है, कि इन मौकों पर आपको निगाह क्यों नहीं जाती। मैं तो बुड्ढा हो गया और अब कोई नया काम नही सीख सकता, वर्ना इस वक्त़ लीडरों का लीडर होता।

इस आग की लपट जैसे मज़ाक ने जिस्म में शोले पैदा कर दिये। आँखों से