गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा की जुबली हुई थी और इसके बाद ही आज़ाद शम्स-उल-उलेमा हुए थे। इस सफ़रके बादही आपने बेरून शहर लाहौर बागमें लाइब्रेरी कायम की थी। अपनी मुसाफिरत पर एक लेक्चर भी दिया था। पहिली सियाहतके कुछ अस बाद ही आप सरकारी कालेजके प्रोफेसर हुए थे। उन तक़सीर खिदमत। शम्स-उल-उलेमा मौलवी मुहम्मद हुसेन 'आज़ाद'की निस्बत पहिला मज़मून जुलाई सन् १६०६ ई० के “ज़मानामें" शायार हुआ, तबसे आज पूरे नौ महीनेके बाद, दूसरा मज़मून शाया होता है। मुसलसिल लिखा जाता, तो अबतक यह काम पूरा हो जाता। मगर पहिला मज़मून निकलते ही कई बात ऐसी पेश आईं, जिनसे आजतक यह सिलसिला रुका रहा । एक तो राकिमकी अलालते४ तबआ ख़ासकर बीमारी चश्मसे इसमें रुकावट हुई। फिर पहिला मज़मून पढ़कर हज़रत आज़ादके साहबज़ादे जनाब मुहम्मद इब्राहीम साहव मुंसिफ लाहौरने, एडीटर साहब “ज़माना" को एक खत लिखा कि मज़मूनमें कुछ ग़लतियाँ हैं । साथही उन गलतियों- को सही करनेका वायदा भी आगा साहबने किया था। एडीटर 'ज़माना'- से यह बात मालूम करके राकिमने आशा साहबको खत लिखा कि उन गलतियोंसे इस नाचीज़को वाक़िफ़ किया जाय तो यह खुद दूसरे नम्बरमें उनको दुरुस्त५ कर देगा। पहिले कुछ उम्मेद भी उनकी तरफ़से हुई, मगर आखिरकार मायूसीका सामना हुआ। मजबूर अब बहुतसे दोस्तोंके तकाज़ां, बल्कि तानों६ की ताब न लाकर राकिम फिर यह सिल- १-विलंवके लिये क्षमा याचना । २-प्रकाशित। ३-लगातार । ४- तबियतकी खराबी। ५ - ठीक । ६-बोली ठोली । [ ९२ ]
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