मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद के मज़ामीन नज्म करनेवाले शअरा३२ और आला दजाकी अदकनसर. २३ लिग्वनेवाले जरा गौर कर कि बाज़ाद किसबलाका आदमी है। बच्चोंको किताब लिखनेमें उसने कमा अंग्रजो किताबोंका मुकाबिला किया। उदृमें एमी किताब कहां थी ? इस किम्मकी किताबोंको तसनीफ़का ३४ वयाल आजादने अंग्रेजीसे लिया। मगर अपनी जबानमें उसका चरबा २५ इस खूबसूरतीसे उतारा कि गोया उमें यह सदासे मौजूद थी। तीसरी और चौथी किताव भी इसी तरह दर्जा बदर्जा बढ़ती गई हैं । उनकेबाज़ मज़ामीन बहुत आला दर्जके हुए हैं। आज़ादके सिवा कोई दमरा उन्हें लिखना तो वह इम पायाके कभी न होते। काश ! बादकी चार किताब भी उन्हींके कलमसे तैयार होती। ___यह उद्देकी पहली और दूसरी किताब पांचवीं बार छपी हैं। पहली किताब डेढ़ लाग्य छपी है और दूसरी एक लाग्य । चूंकि यह सन १८६२ ई० को छपी हुई हैं, इससे ताज्जुब नहीं जो छठी बार भी छपी हों। इससे ज़ाहिर है कि आजादके कलमने पंजाबमें उर्दकी इशायतके लिये क्या काम किया। बड़े होशियार थे साविक डाइरेक्टर कर्नल हाम- राइड साहब, जिन्होंने सरिश्ता-तालीम पंजाबकी इस खिदमतके लिये मौलाना आज़ादको चुना । मगर एक बात बड़े अफ़सोसकी है, कि सरिश्ता तालीमकी किताब होनेसे इनमें बार-बार तगैयर ३७ व तबद्दुल ३८ कमी व
- लीथोमें उर्दूकी किताबे एकबार एक हजार ही उम्दा छपा करती थीं। रायसाहब
गुलाबसिंह मरहूमने ऐसी कल निकाली कि अब लीथोसे उर्दूकी किताबें एक ही बार कई २ हजार बल्कि लाख तक छप सकती हैं। लाहौर में उर्दू किताबें छापनेमें राय साहब मरहम कमाल तरक्की करके दिखा गये हैं । सरिश्ता तालीम पंजाबकी ज्यादातर किताबें आपहीके मुतबयमें छपी हैं। ३२ --कवि । ३३- कठिन गद्य। ३४-लिखनेका। ३५-प्रतिविम्ब । ३६-प्रचार। ३७-बदलना। ३८-तबदील करना । १०३ ]