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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१३१

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गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि हिन्दुस्थानी भाषामें मिलती गई। सुबुक्तगीन या महमूदके समयकी कुछ लिखावटें अब तक नहीं मिलीं । बहुत खोज करने पर भी हिन्दीमें चन्द कविके "पृथीराज रासा” से पुरानी कोई पोथी नहीं मिली है ।* पृथीराज दिल्लीका अन्तिम शक्तिशाली महाराज था। उसके पीछे दिल्लीमें हिन्दुओंके राज्यका दीपनिर्वाण हुआ। सन ११६१ में उसने शहाबुद्दीन गोरीको हराया था और पीछे ११६३ में उससे हार खाई थी। पृथीराजरासामें पृथीराजकी वीरताका कीर्तन है। उसके पढ़नेसे विदित होता है कि उस समयकी हिन्दी-भाषा बड़ी विचित्र थी। आज कल उसके आधे शब्दोंका अर्थ भी लोग ठीक ठीक नहीं समझ सकते । इतने- पर यह आश्चर्यकी बात है कि फारसी अरबीके शब्द उसमें बड़ी बहु- तायतसे घुसे हुए हैं। यहाँतक कि थोड़ीसी खोजसे प्रत्येक पृष्ठमें कई कई मिल जाते हैं। उदाहरणकी भांति चन्दकी कवितामेंसे कुछ टुकड़े उद्धत किये जाते हैं;- सात कोसको दुर्ग है, तापर जरत 'मशाल' । सो देखी मीरां तहां, तनमें ऊठी झाल । पियै दूध मण पंच, सेर पैतीस जु 'शक्कर' । अन नवता कड़ि खाय, बली एक मोटो बक्कर । काल कूट त्रय सेर, सवा मण घृत्त सुपोषन । कस्तरी एक सेर, सेर दो केसर चोषन । मण चार दही महिषी तरन, भोगराज मटकी भरै। सवा पहर दिन चढ़त ही, सीरा मणि चामुंड करें।

  • इतना लिखने के बाद चन्दसे पुरानी कविता कुछ मिली है-

रावल देव भाटी जैसलमेरके राजों का मूर पुरुष सं० ९०९ में हुआ। उसके बनाये दोहे जैसलमेरको ख्यातमें लिखे हैं- [ ११४ ]