गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि - - सीसी करके नाम बताया तामें बैठा एक । उलटा सीधा हिर फिर देखो वही एकका एक । भेद पहेली में कही तू सुनले मेरे लाल । अरबी हिन्दी फारसी तीनों करो खयाल । यह लालकी पहेली है । यद्यपि पहेलीकी भाषा हिन्दी है, पर उसका अर्थ अरबी, फारसीकीत रफ भी चहलकदमी करता है। अरबीमें लाल सुर्खको कहते हैं। फारमीमें गंगे बहरेको। हिन्दीमें एक छोटीसी चिड़ियाका नाम लाल है। इसीसे कवि उसके रहनेका ठिकाना बांसका मन्दिर अर्थात् पिंजरा बताता है। वाशा छोटे वाजका नाम है। वह लालको मारकर खाजाता है, इससे उसे वाशेका खाजा कहा। राव राजा लालको सिर पर रखते हैं, यह भी ठीक है ; क्योंकि लाल रत्न होता है। सीसी करनेके समय मुंहसे लाल टपकती है, उससे भी लालका अर्थ निकला। फिर लालको उलटकर पढ़नेसे भी लालही रहता है। फिर लाल हिन्दीमें बच्चेको कहते हैं, मेरे लाल कहनेसे वह अर्थ भी हो गया। इस प्रकार अरबी, हिन्दी, फारसी, तीन भाषाओंका खयाल कविने एक शब्दसे उत्पन्न किया। इती तरह एक और पहेली है- बीसोंका सिर काट लिया, नामारा नाखून किया। खुसरूकी यह बहादुरी है कि पहेलीमें किसी तरह उस चीजका नाम भी ला देता है, जिसकी पहली है। यह नाखूनकी पहेली है। बीसों नाखून काटे जाते हैं। इससे खुसर बड़े चोचलेसे कहता है कि बीसोंका सिर काट लिया न किसीको मारा न खून किया। साथ ही नाखून कियामें अर्थ भी निकल आया कि नाग्वून ठीक किये । बहुत पहेलियां सीधी हिन्दी अर्थकी भी हैं। जैसे- चार महीने बहुत चले और महीने थोरी। [ १२४ ]
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